सभी मतदाता अपने-अपने पार्षदों को एसएमएस करें, उनसे कहें-
- बिकें नहीं, टिके रहें, आत्मा की आवाज पर सभापति चुनें
श्रीगंगानगर। नगर परिषद चुनावों का परिणाम आने के साथ ही पार्षदों की बाड़ेबंदी शुरू हो गई। सभापति बनने की होड़ में लगे नेताओं से जितने पार्षदों का जुगाड़ हो गया, उतने पार्षद उन्होंने अपने काबू में कर लिए। अब चर्चाएं दस से पन्द्रह लाख रुपये की हो रही हैं। सभापति की कुर्सी पर अपने परिवार की महिला को बैठाने के लिए धन्नासेठों ने खजाने के थैलों के मुंह खोल दिए हैं। जिस तरह का खेल हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। अब तो मतदाताओं का फर्ज है कि वह पार्षदों की बिकवाली रोकने के लिए एक कोशिश जरूर करें। मतदाता अपने-अपने पार्षदों से किसी भी तरह संपर्क साधें। उन्हें एक अदद एसएमएस या व्हाट्स एप मैसेज ही कर दें। अपने पार्षद को कहें कि वह बिकें नहीं, टिकें रहें और अपनी आत्मा की आवाज पर सभापति का चुनाव करें।
पार्षद का चुनाव लडऩे के लिए मैदान में उतरे ज्यादातर प्रत्याशियों को मतगणना का परिणाम आने से पहले ही विभिन्न नेताओं ने अपने यहां बाड़ेबंदी मेंं शामिल कर लिया। रहे-सहे प्रत्याशियों को जीतने के तुरंत बाद बाड़ेबंदी में ले जाया गया। इसी के साथ पार्षदों के मोल-भाव की खबरें आना शुरू हो गईं।
हैरानी है जिन प्रत्याशियों ने विकास के वादों और समस्याओं के समाधान के वायदे के साथ वोट लिए, उन्हें आज कुछ भी याद नहीं रहा है। कोई इस धन्नासेठ की गोद में जा बैठा है तो कोई उस अमीर के पैसों पर मौज मारने में जुटा है। एक गुट की ओर से बाड़ेबंदी में ले जाए गए पार्षदों को अब हिमाचल प्रदेश में सैर के लिए ले जाए जाने की चर्चा है।
कितनी अफसोसजनक स्थिति है कि चुनाव में न जाने कितनी उम्मीदों के साथ वोट देने वाले मतदाता चेहरे लटकाने पर मजबूर हो गए हैं और उन्हीं के वोट पर पार्षद बने लोग वादियों की सैर करके आनंदित हो रहे हैं। विजयी पार्षदों के हंसी-ठ_ों के दौर में मतदाता हैरान हो कर देख रहा है। लेकिन मतदाताओं को निराश नहीं होना चाहिए। मतदाताओं को अपने पार्षद को अपनी भावनाओं से अवगत जरूर करवाना चाहिए। हालांकि इसकी संभावना कम ही है लेकिन हो सकता है पार्षद का स्वाभिमान जाग जाएं।
श्रीगंगानगर। नगर परिषद चुनावों का परिणाम आने के साथ ही पार्षदों की बाड़ेबंदी शुरू हो गई। सभापति बनने की होड़ में लगे नेताओं से जितने पार्षदों का जुगाड़ हो गया, उतने पार्षद उन्होंने अपने काबू में कर लिए। अब चर्चाएं दस से पन्द्रह लाख रुपये की हो रही हैं। सभापति की कुर्सी पर अपने परिवार की महिला को बैठाने के लिए धन्नासेठों ने खजाने के थैलों के मुंह खोल दिए हैं। जिस तरह का खेल हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। अब तो मतदाताओं का फर्ज है कि वह पार्षदों की बिकवाली रोकने के लिए एक कोशिश जरूर करें। मतदाता अपने-अपने पार्षदों से किसी भी तरह संपर्क साधें। उन्हें एक अदद एसएमएस या व्हाट्स एप मैसेज ही कर दें। अपने पार्षद को कहें कि वह बिकें नहीं, टिकें रहें और अपनी आत्मा की आवाज पर सभापति का चुनाव करें।
पार्षद का चुनाव लडऩे के लिए मैदान में उतरे ज्यादातर प्रत्याशियों को मतगणना का परिणाम आने से पहले ही विभिन्न नेताओं ने अपने यहां बाड़ेबंदी मेंं शामिल कर लिया। रहे-सहे प्रत्याशियों को जीतने के तुरंत बाद बाड़ेबंदी में ले जाया गया। इसी के साथ पार्षदों के मोल-भाव की खबरें आना शुरू हो गईं।
हैरानी है जिन प्रत्याशियों ने विकास के वादों और समस्याओं के समाधान के वायदे के साथ वोट लिए, उन्हें आज कुछ भी याद नहीं रहा है। कोई इस धन्नासेठ की गोद में जा बैठा है तो कोई उस अमीर के पैसों पर मौज मारने में जुटा है। एक गुट की ओर से बाड़ेबंदी में ले जाए गए पार्षदों को अब हिमाचल प्रदेश में सैर के लिए ले जाए जाने की चर्चा है।
कितनी अफसोसजनक स्थिति है कि चुनाव में न जाने कितनी उम्मीदों के साथ वोट देने वाले मतदाता चेहरे लटकाने पर मजबूर हो गए हैं और उन्हीं के वोट पर पार्षद बने लोग वादियों की सैर करके आनंदित हो रहे हैं। विजयी पार्षदों के हंसी-ठ_ों के दौर में मतदाता हैरान हो कर देख रहा है। लेकिन मतदाताओं को निराश नहीं होना चाहिए। मतदाताओं को अपने पार्षद को अपनी भावनाओं से अवगत जरूर करवाना चाहिए। हालांकि इसकी संभावना कम ही है लेकिन हो सकता है पार्षद का स्वाभिमान जाग जाएं।
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