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कोई नहीं पूछ रहा पार्षदों की राय, पैसे से तय होगी शहर की सरकार

- निर्दलीय तो दूर, पार्टियों के टिकट पर जीते पार्षद भी अपनी पार्टी के साथ नहीं
श्रीगंगानगर। नगर परिषद के सभापति के चुनाव का समय नजदीक आ रहा है। कायदे से पार्षदों ने सभापति का चुनाव करना है लेकिन पार्षदों की राय कोई नहीं पूछ रहा है।
कांग्रेस, भाजपा और अन्य नेता पैसे के बल पर शहर की सरकार बनाने की कोशिशों मेंं जुटे हैं। पैसे वालों ने जितने बन पड़े, उतने पार्षदों को अपने काबू में कर लिया।
बहुमत के लिए दरकार जादुई आंकड़े के हिसाब से पार्षद जुटाने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। जो जितना ज्यादा पैसा बहाएगा, उसे सभापति का ओहदा मिलना तय माना जा रहा है।
हर किसी में मौके का फायदा उठाने की होड़ लगी हुई है। कल तक मतदाताओं के वोट लेने के लिए विकास की गंगा बहाने का वादा करने वाले लोग पार्षद बनते ही सब भुला बैठे हैं। निर्दलीय जीते पार्षद तो इतने हैं ही, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के टिकट पर जीते पार्षद भी अपनी पार्टी के साथ नहीं हैं। जिधर से जितना बढिय़ा ऑफर आ रहा है, वह उधर ही फिसलते जा रहे हैं। चर्चा दस से पन्द्रह लाख रुपये की होने लगी है।
हर कोई बहती गंगा में हाथ धोने के लिए लालायित नजर आ रहा है। पांच साल पहले लोकतंत्र को पांवों तले रौंदने वाले इस बार फिर उसी कवायद में जुटे हैं। चाहे कितनी पैसा बहाना पड़े, वह एक फिर 'सर्वदलीय सभापतिÓ बनाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं।

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