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अब श्रीगंगानगर में होगा कीड़ा जड़ी का उत्पादन

- कैंसर सहित विभिन्न रोगों के इलाज में कारगर
श्रीगंगानगर। विश्व के गिने चुने इलाकों में पैदा होने वाली कीड़ा जड़ी का उत्पादन अब श्रीगंगानगर में होने लगा है। एसडी बिहाणी कॉलेज के बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग ने प्रयोगशाला में इस दिव्य औषधीय पौधे का सफलतापूर्वक उत्पादन कर मरूभूमि राजस्थान में इतिहास रचा है। इस अनुसंधान से सम्बन्धित पेपर का प्रकाशन यूरोपियन जर्नल में सितम्बर माह में हो चुका है। कीड़ा जड़ी का प्राकृतिक उत्पादन तिब्बत, चायना और हिमालय के कुछ इलाकों में ही होता है। चायना और नेपाल में कीड़ा जड़ी को यार्सा गुम्बा के नाम से जाना जाता है। डॉ. चरणजीतसिंह ने बताया कि कीड़ा जड़ी औषधीय मशरूम है, जिसे संजीवनी बूटी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। इसके लिए बिहाणी कॉलेज प्रयोगशाला बनाएगा।
कैंसर, एड्स, मधुमेह, श्वास और गुर्दें से संबंधित रोगों के उपचार में यह रामबाण है। चायना व कोरिया के खिलाड़ी, हिमालय की घुमन्तु जातियाँ और एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोही एनर्जी बूस्ट के रूप में इसी का सेवन करते हैं। हृदय एवं सैक्स रोगों के उपचार में भी कीड़ा जड़ी का उपयोग होता है।
राजस्थान में प्रथम बार
डॉ. चरणजीतसिंह ने बताया कि राजस्थान में एकमात्र श्रीगंगानगर में औषधीय मशरूम का प्रयोगशाला में उत्पादन शुरू हुआ है। यह अनुसंधान आधुनिक खेती में क्रान्तिकारी बदलाव लाएगा क्योंकि औषधीय मशरूम का उपयोग आयुर्वेदिक, एलोपैथिक और होम्योपैथी सहित विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में दवा निर्माण के लिए हो रहा है। औषधीय मशरूम की दो प्रजातियों में से एक की कीमत 5 लाख रुपये किलो है जबकि दूसरी की कीमत 60 से 70 लाख रुपये किलो है।
बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग की छोटी सी प्रयोगशाला में किए गए इस बड़े अनुसंधान पर सेठ गिरधारीलाल बिहाणी सनातन धर्म शिक्षा ट्रस्ट के अध्यक्ष जयदीप बिहाणी ने डॉ. चरणजीतसिंह और उनके सहयोगियों को बधाई दी है। श्री बिहाणी ने कहा कि सीमित संसाधनों के बावजूद बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग का यह अनुसंधान इस जिले के लिए गर्व का विषय है। विभाग की इस उपलब्धि को देखते हुए ट्रस्ट भविष्य में अत्याधुनिक सुविधाओं युक्त प्रयोगशाला का निर्माण करवाएगा ताकि वहाँ पर अनुसंधानों का क्रम निरन्तर जारी रहे।


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