षष्ठम दुर्गा : कात्यायनी
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
मां दुर्गा के छवें स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थी। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी, इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुई। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी है। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्रÓ में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त हो जाता है।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
मां दुर्गा के छवें स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थी। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी, इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुई। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी है। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्रÓ में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त हो जाता है।
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