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स्वीकृति के अभाव में एसीबी नहीं कर पाई कोर्ट में चालान

- पार्षदों की हकीकत : नगर परिषद बोर्ड की बैठक में रिश्वतखोरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति देने से इंकार
श्रीगंगानगर। नगर परिषद बोर्ड मेें हमारे अधिकारों की पैरवी व वार्ड का विकास करवाने के लिए हम अपने मताधिकार का उपयोग करके जिन   पार्षदों को बोर्ड में भेजते हैं, वह हकीकत में अपने कत्र्तव्य के लिए कितने ईमानदार हैं, इसकी सच्चाई पिछले कुछ सालों में एसीबी के हाथों ट्रेप किए गये नगर परिषद के अधिकारियों व कर्मचारियों के मामले पर गौर करने से पता चलता है।
एसीबी ने अपना जाल बिछा कर नगर परिषद के कई अधिकारियों व कर्मचारियों को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा, लेकिन जब एसीबी ने इन कर्मचारियों के खिलाफ कोर्ट में अभियोजन पेश करने की अनुमति मांगी, तो बोर्ड की बैठक में सर्वसम्मति से इंकार कर दिया गया। बड़ी हैरत की बात है कि अभियोजन स्वीकृति के बिना भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोर्ट में चालान नहीं हो पाया और मुकदमा दफन हो गया।
एसीबी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेन्द्र ढिढ़ारिया ने बताया कि  फर्जी दस्तावेजों से वृद्धावस्था पेंशन स्वीकृत करने के मामले की तफ्तीश के बाद एसीबी में मुकदमा नम्बर 82/2012 दर्ज हुआ। लम्बी जांच पड़ताल के बाद एसीबी ने तत्कालीन सफाई निरीक्षक नरेश झोरड़, देवीलाल मीणा, तत्कालीन पार्षद हीरालाल गोदारा व नरेन्द्र गिरी को गिरफ्तार कर लिया। इनके खिलाफ कोर्ट में चालान करने के लिए एसीबी ने कर्मचारियों के खिलाफ नगर परिषद से अभियोजन स्वीकृति मांगी। इसे नगर परिषद बोर्ड की बैठक नवम्बर 2016 में रखा गया, लेकिन पार्षदों ने अभियोजन स्वीकृति की इजाजत नहीं दी। ऐसे में इनके खिलाफ चालान नहीं हो सका। मजबूरन एफआर देनी पड़ी।
नगर परिषद से जुड़ा दूसरा प्रकरण
वर्ष 2016 में एक ठेकेदार की शिकायत पर एसीबी जयपुर की टीम ने ठेकेदार के निर्माण कार्यो का बिल पास करने की एवज में रिश्वत लेते हुए नगर परिषद के तत्कालीन एईएन मेजर सिंह,  एक महिला पार्षद व उसके पति को गिरफ्तार किया था। एसीबी के अधिकारी सुरेन्द्र राठौड़ के नेतृत्व में जयपुर से आई टीम ने यह कार्रवाई की थी। इस प्रकरण में भी एसीबी ने एईएन मेजर ङ्क्षसह के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति नगर परिषद से मांगी थी, लेकिन नगर परिषद बोर्ड की वर्ष 2018 में हुई बैठक में स्वीकृति देने से इंकार कर दिया। उधर महिला पार्षद के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति स्थानीय निकाय जयपुर (डीएलबी) से मांगी गई थी, लेकिन डीएलबी ने भी पार्षद के खिलाफ स्वीकृति देने से इंकार कर दिया। ऐसे में इस प्रकरण में भी एसीबी चालान पेश नहीं कर पाई।
एसीबी की स्थानीय चौकी के प्रभारी एएसपी राजेन्द्र ढिढ़ारिया बताते हैं कि शिकायत का सत्यापन करने के बाद एसीबी ट्रेप करने में कामयाब होती है। ठोस सबूतों के साथ किसी सरकारी अधिकारी व कर्मचारी को ट्रेप किया जाता है, लेकिन उसके खिलाफ चालान करने की स्वीकृति संबंधित विभाग देता है। अनेक मामलों में अभियोजन स्वीकृति के अभाव में एसीबी कोर्ट में चालान नहीं कर पाती।


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