श्रीगंगानगर के कॉलेजों मेंं लगातार घट रही है विद्यार्थियों की तादाद
- पढऩे के लिए बच्चे कर रहे बड़े शहरों का रुख
श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर के विद्यार्थियों का शहर के कॉलेजों में पढऩे से मोह भंग हो रहा है। शहर के छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा, कोचिंग और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोटा, जयपुर, सीकर, बीकानेर, अजमेर, जोधपुर, दिल्ली समेत तमाम बड़े शहरों को तरजीह दे रहे हैं। इसका परिणाम श्रीगंगानगर के कॉलेजों में छात्र-छात्राओं की घटती संख्या के रूप में सामने आ रहा है। कॉलेज संचालक इससे चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि अगर ऐसा ही रहा तो शहर की शिक्षण संस्थाओं मेंं वीरानगी छा जाएगी।
कुछ साल पहले तक प्लस टू पास करने के बाद छात्र-छात्राएं सीधे कॉलेजों का रुख करते थे। देखते ही देखते सभी सीटें भर जाती थीं। अब हालात बदल गए हैं। प्लस टू के बाद अब बच्चे स्थानीय कॉलेज में एडमिशन लेने के बजाय बड़े शहरों में जा कर 4 इयर इंटीग्रेटेड बीएड कोर्स, क्लैट पास कर 5 इयर लॉ करने को तरजीह दे रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार शहर के करीब डेढ़ बच्चे हर साल क्लैट पास कर 5 इयर लॉ में एडमिशन ले रहे हैं।
अस्सी से नब्बे फीसदी माक्र्स वाले अब बच्चे प्रशासनिक, बैंकिंग आदि की तैयारी पढ़ाई के साथ ही करना चाह रहे हैं लेकिन इस तैयारी के लिए वह श्रीगंगानगर के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को बेहतर नहीं मानते। लिहाजा, वह कॉलेज की पढ़ाई भी बड़े शहर में करना पसंद कर रहे हैं, जहां वह इसके साथ-साथ बैंकिंग, आरएएस, आईएएस, एसएससी की कोचिंग भी ले सकते हैं। मेडिकल, सीए की तैयारी के लिए बड़े शहरों मेंं बच्चों के जाने का असर स्थानीय कॉलेजों पर पड़ रहा है।
शहर कॉलेजों मेंं जहां पहले कॉमर्स के प्रति बहुत रूझान था, यह घट गया है। आट्र्स सब्जेक्ट के प्रति रूझान बढ़ा है लेकिन इसमें भी वह बच्चे एडमिशन ले रहे हैं, जिनके परिवार वाले उन्हें बाहर भेजकर पढ़ाने में समर्थ नहीं हैें। प्लस टू तक साइंस पढऩे वाले विद्यार्थी भी कॉलेज में आर्ट में ग्रेज्युएशन करना पसंद कर रहे हैं। इसका परिणाम साइंस और कॉमर्स की सीटें खाली रहने के रूप में सामने आ रहा है। मसलन, बिहाणी एसडी कॉलेज में जहां पहले 3200 तक स्टूडेंट्स होते थे, वहीं अब बमुश्किल
2400-2500 सीटें ही भर पा रही हैं।
सभी 10 कॉलेजों में यही स्थिति
जानकारों की मानें तो शहर के सभी दस कॉलेजों में छात्र संख्या घटने की स्थिति है। प्रत्येक कॉलेज में बच्चों की तादाद घट रही है। अगर कुछ बढ़ रहा है तो वह है लड़कियों की तादाद। जानकारों के अनुसार शहर के कॉलेजों मेंं लड़कियों की संख्या मेंं इजाफा हो रहा है। इसकी वजह ज्यादातर अभिभावकों द्वारा लड़कियों को पढऩे के लिए बाहर नहीं भेजना है। स्थानीय कॉलेजों मेें पढ़ कर भी लड़कियां लड़कों से बेहतर परिणाम दे रही हैं। आर्थिक कारणों से निम्न और निम्न मध्यम वर्ग के लड़के भी बड़े शहरों मेंं पढऩे नहीं जा रहे। इस कारण वह जरूर स्थानीय कॉलेजों मेंं आ रहे हैं। लेकिन साधन संपन्न परिवारों के बच्च प्लस टू के बाद सीधे बड़े शहरों का ही रुख कर रहे हैं।
इनका कहना है
शहर के कॉलेजों मेंं क्वालिटी एजुकेशन का अभाव है, ऐसी बात नहीं है। दरअसल, विज्ञापनों के मायाजाल में बच्चों को फंसाकर उन्हें ऐसे सब्जबाग दिखाए जाते हैं, जिससे उन्हें जयपुर-दिल्ली ही बेहतर विकल्प दिखता है। इसका दुष्परिणाम शहर की शिक्षण संस्थाओं में बच्चों की तादाद घटने के रूप मेंं सामने आ रहा है। इस पर अभिभावकों को विचार करना चाहिए।
-राजेन्द्र राठी, निदेशक, एसडी बिहाणी एजुकेशन ट्रस्ट, श्रीगंगानगर।
सरकार द्वारा फोर्थ ईयर इंटीग्रेटेड बीएड कोर्स शुरू करने के बाद अधिकांश विद्यार्थियों का रुझान इस ओर हुआ है। साथ ही विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं।
-मोहित राजपूत, बॉटनी लैक्चरार, खालसा कॉलेज, श्रीगंगानगर
पढऩे के लिए बच्चे पहले भी बड़े शहरों की ओर जाते रहे हैं। इसमें ज्यादा तेजी नहीं आई है। हां, गांवों से उच्च शिक्षा के लिए शहर आने वाले बच्चे की संख्या जरुर कम हुई है। ऐसे बच्चों को अब गांवों-तहसीलों में ही कॉलेज में पढऩे की सुविधा मिलने लगी है। रही बात, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की तो बड़ी संख्या में बच्चे गंगानगर में ही रहकर अच्छी तैयारी कर रहे हैं।
केएल यादव, निदेशक, डॉ. राधाकृष्णन कॉलेज, श्रीगंगानगर
श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर के विद्यार्थियों का शहर के कॉलेजों में पढऩे से मोह भंग हो रहा है। शहर के छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा, कोचिंग और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोटा, जयपुर, सीकर, बीकानेर, अजमेर, जोधपुर, दिल्ली समेत तमाम बड़े शहरों को तरजीह दे रहे हैं। इसका परिणाम श्रीगंगानगर के कॉलेजों में छात्र-छात्राओं की घटती संख्या के रूप में सामने आ रहा है। कॉलेज संचालक इससे चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि अगर ऐसा ही रहा तो शहर की शिक्षण संस्थाओं मेंं वीरानगी छा जाएगी।
कुछ साल पहले तक प्लस टू पास करने के बाद छात्र-छात्राएं सीधे कॉलेजों का रुख करते थे। देखते ही देखते सभी सीटें भर जाती थीं। अब हालात बदल गए हैं। प्लस टू के बाद अब बच्चे स्थानीय कॉलेज में एडमिशन लेने के बजाय बड़े शहरों में जा कर 4 इयर इंटीग्रेटेड बीएड कोर्स, क्लैट पास कर 5 इयर लॉ करने को तरजीह दे रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार शहर के करीब डेढ़ बच्चे हर साल क्लैट पास कर 5 इयर लॉ में एडमिशन ले रहे हैं।
अस्सी से नब्बे फीसदी माक्र्स वाले अब बच्चे प्रशासनिक, बैंकिंग आदि की तैयारी पढ़ाई के साथ ही करना चाह रहे हैं लेकिन इस तैयारी के लिए वह श्रीगंगानगर के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को बेहतर नहीं मानते। लिहाजा, वह कॉलेज की पढ़ाई भी बड़े शहर में करना पसंद कर रहे हैं, जहां वह इसके साथ-साथ बैंकिंग, आरएएस, आईएएस, एसएससी की कोचिंग भी ले सकते हैं। मेडिकल, सीए की तैयारी के लिए बड़े शहरों मेंं बच्चों के जाने का असर स्थानीय कॉलेजों पर पड़ रहा है।
शहर कॉलेजों मेंं जहां पहले कॉमर्स के प्रति बहुत रूझान था, यह घट गया है। आट्र्स सब्जेक्ट के प्रति रूझान बढ़ा है लेकिन इसमें भी वह बच्चे एडमिशन ले रहे हैं, जिनके परिवार वाले उन्हें बाहर भेजकर पढ़ाने में समर्थ नहीं हैें। प्लस टू तक साइंस पढऩे वाले विद्यार्थी भी कॉलेज में आर्ट में ग्रेज्युएशन करना पसंद कर रहे हैं। इसका परिणाम साइंस और कॉमर्स की सीटें खाली रहने के रूप में सामने आ रहा है। मसलन, बिहाणी एसडी कॉलेज में जहां पहले 3200 तक स्टूडेंट्स होते थे, वहीं अब बमुश्किल
2400-2500 सीटें ही भर पा रही हैं।
सभी 10 कॉलेजों में यही स्थिति
जानकारों की मानें तो शहर के सभी दस कॉलेजों में छात्र संख्या घटने की स्थिति है। प्रत्येक कॉलेज में बच्चों की तादाद घट रही है। अगर कुछ बढ़ रहा है तो वह है लड़कियों की तादाद। जानकारों के अनुसार शहर के कॉलेजों मेंं लड़कियों की संख्या मेंं इजाफा हो रहा है। इसकी वजह ज्यादातर अभिभावकों द्वारा लड़कियों को पढऩे के लिए बाहर नहीं भेजना है। स्थानीय कॉलेजों मेें पढ़ कर भी लड़कियां लड़कों से बेहतर परिणाम दे रही हैं। आर्थिक कारणों से निम्न और निम्न मध्यम वर्ग के लड़के भी बड़े शहरों मेंं पढऩे नहीं जा रहे। इस कारण वह जरूर स्थानीय कॉलेजों मेंं आ रहे हैं। लेकिन साधन संपन्न परिवारों के बच्च प्लस टू के बाद सीधे बड़े शहरों का ही रुख कर रहे हैं।
इनका कहना है
शहर के कॉलेजों मेंं क्वालिटी एजुकेशन का अभाव है, ऐसी बात नहीं है। दरअसल, विज्ञापनों के मायाजाल में बच्चों को फंसाकर उन्हें ऐसे सब्जबाग दिखाए जाते हैं, जिससे उन्हें जयपुर-दिल्ली ही बेहतर विकल्प दिखता है। इसका दुष्परिणाम शहर की शिक्षण संस्थाओं में बच्चों की तादाद घटने के रूप मेंं सामने आ रहा है। इस पर अभिभावकों को विचार करना चाहिए।
-राजेन्द्र राठी, निदेशक, एसडी बिहाणी एजुकेशन ट्रस्ट, श्रीगंगानगर।
सरकार द्वारा फोर्थ ईयर इंटीग्रेटेड बीएड कोर्स शुरू करने के बाद अधिकांश विद्यार्थियों का रुझान इस ओर हुआ है। साथ ही विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं।
-मोहित राजपूत, बॉटनी लैक्चरार, खालसा कॉलेज, श्रीगंगानगर
पढऩे के लिए बच्चे पहले भी बड़े शहरों की ओर जाते रहे हैं। इसमें ज्यादा तेजी नहीं आई है। हां, गांवों से उच्च शिक्षा के लिए शहर आने वाले बच्चे की संख्या जरुर कम हुई है। ऐसे बच्चों को अब गांवों-तहसीलों में ही कॉलेज में पढऩे की सुविधा मिलने लगी है। रही बात, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की तो बड़ी संख्या में बच्चे गंगानगर में ही रहकर अच्छी तैयारी कर रहे हैं।
केएल यादव, निदेशक, डॉ. राधाकृष्णन कॉलेज, श्रीगंगानगर

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