कल सो जाएंगे देव, विवाह-शादियों पर लगेगा बे्रक
- चार महीने तक नहीं होंगे शुभ एवं मांगलिक कार्य
श्रीगंगानगर। बारह जुलाई को देवशयनी एकादशी के मौके पर देव सो जाएंगे। इसी के साथ विवाह-शादियों पर चार माह के लिए ब्रेक लग जाएगा। इस दौरान किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इसी दिन से चातुर्मास शुरू होगा।
पंडित सत्यपाल पाराशर ने बताया कि देवशयनी एकादशी के दिन ही चार महीनों के लिए बृहस्पति अस्त हो जाएगा। बृहस्पति के अस्त होते ही चातुर्मास शुरू हो जाएंगे। भगवान विष्णु निद्रामग्न हो जाने से विवाह का कोई लग्न नहीं रहेगा। इसी कारण चार महीने तक विवाह-शादी नहीं होंगे।
उन्होंने बताया कि आठ नवंबर को देव उठनी एकादशी को जब भगवान विष्णु जागेंगे, तभी शुभ लग्नों की शुरुआत होगी। उसके बाद लग्न शुरू हो जाएंगे। शास्त्रों में वर्णित है कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि क्षीर सागर की जगह पाताल लोक में बलि के द्वार पर विश्राम करने के लिए निवास करते हैं। यही कारण है कि इस व्रत का नाम देवशयनी एकादशी पड़ा है। देवोत्थान एकादशी से विवाह, जनेऊ, गृह प्रवेश, मुंडन आदि मांगलिक कार्य शुरू होंगे। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष से चार माह के लिए शयनकाल में जाने के बाद कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के दौरान किसी प्रकार का मांगलिक कार्य करना निषेध माना गया है। इसलिए इस बीच विवाह-उपनयन आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
इन चार माह में भ्रमण वर्जित होने के कारण साधु-संत, संन्यासी भी एक ही स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी व्रत के करने से सारे पाप नष्ट होते हैं तथा समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हंै। मनुष्य को भगवान उत्तम गति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति प्रति वर्ष श्रीहरि का व्रत करते हैं, उन्हें बैकुंठ लोक प्राप्त होता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखा जाता है सभी सदस्यों को भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है। देवोत्थान एकादशी इस बार आठ नवंबर शुक्रवार को है, इसे हरि प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी देवोत्थान एकादशी को जागते हैं। धार्मिक व्यक्ति इस दिन तुलसी और शालीग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं।
श्रीगंगानगर। बारह जुलाई को देवशयनी एकादशी के मौके पर देव सो जाएंगे। इसी के साथ विवाह-शादियों पर चार माह के लिए ब्रेक लग जाएगा। इस दौरान किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इसी दिन से चातुर्मास शुरू होगा।
पंडित सत्यपाल पाराशर ने बताया कि देवशयनी एकादशी के दिन ही चार महीनों के लिए बृहस्पति अस्त हो जाएगा। बृहस्पति के अस्त होते ही चातुर्मास शुरू हो जाएंगे। भगवान विष्णु निद्रामग्न हो जाने से विवाह का कोई लग्न नहीं रहेगा। इसी कारण चार महीने तक विवाह-शादी नहीं होंगे।
उन्होंने बताया कि आठ नवंबर को देव उठनी एकादशी को जब भगवान विष्णु जागेंगे, तभी शुभ लग्नों की शुरुआत होगी। उसके बाद लग्न शुरू हो जाएंगे। शास्त्रों में वर्णित है कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि क्षीर सागर की जगह पाताल लोक में बलि के द्वार पर विश्राम करने के लिए निवास करते हैं। यही कारण है कि इस व्रत का नाम देवशयनी एकादशी पड़ा है। देवोत्थान एकादशी से विवाह, जनेऊ, गृह प्रवेश, मुंडन आदि मांगलिक कार्य शुरू होंगे। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष से चार माह के लिए शयनकाल में जाने के बाद कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के दौरान किसी प्रकार का मांगलिक कार्य करना निषेध माना गया है। इसलिए इस बीच विवाह-उपनयन आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
इन चार माह में भ्रमण वर्जित होने के कारण साधु-संत, संन्यासी भी एक ही स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी व्रत के करने से सारे पाप नष्ट होते हैं तथा समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हंै। मनुष्य को भगवान उत्तम गति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति प्रति वर्ष श्रीहरि का व्रत करते हैं, उन्हें बैकुंठ लोक प्राप्त होता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखा जाता है सभी सदस्यों को भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है। देवोत्थान एकादशी इस बार आठ नवंबर शुक्रवार को है, इसे हरि प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी देवोत्थान एकादशी को जागते हैं। धार्मिक व्यक्ति इस दिन तुलसी और शालीग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं।
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