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होम बायर्स के लिए सरकार का क्या होगा प्लान, बिल्डरों की धोखाधड़ी से कैसे बचेंगे लोग

नई दिल्ली। अपनी गाढ़ी कमाई और कर्ज के जरिए मकान बुक करने वाले लाखों लोगों की परेशानी का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट ने 9 जुलाई को केंद्र सरकार से कहा था कि वह ऐसा 'यूनिफॉर्मÓ प्रपोजल सामने रखे, जो किसी एक नहीं, बल्कि वादे पूरे न करने वाले तमाम बिल्डरों से जुड़े मामले सुलझाने में काम आए। इसके दो दिन बाद केंद्र ने कह दिया कि ऐसी पॉलिसी बनाने पर काम चल रहा है। अब केंद्र के सामने सवाल है कि बिल्डर की कुर्की से बैंकों के बकाया की रिकवरी और बायर को पजेशन दिलाने के बीच किस तरह संतुलन साधा जाए। सुप्रीम कोर्ट के सामने मामला था जेपी इन्फ्राटेक लिमिटेड के प्रॉजेक्ट्स में फंसे करीब 23000 होम बायर्स का। करीब एक दशक से ईएमआई और रेंट का दोहरा बोझ झेल रहे होम बायर्स का यह इकलौता मामला नहीं है। यूनिटेक लिमिटेड के मामले में भी 16000 से ज्यादा होम बायर फंसे हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में भी केंद्र से प्रॉजेक्ट्स पूरे कराने का प्रपोजल देने को कह चुका है। करीब 42000 होम बायर्स की परेशानी से जुड़े आम्रपाली ग्रुप के मामले में तो लगभग 3500 करोड़ रुपये की हेराफरी का आरोप लगा है। ग्रुप के सीएमडी और दूसरे अधिकारियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। होम बायर्स चाहते हैं कि इन मामलों में कुर्की कराने के बजाय उनके प्रॉजेक्ट पूरे कराए जाएं क्योंकि कुर्की में बैंकों को तो उनका बकाया आधा-अधूरा मिल भी जाएगा, होम बायर्स के फ्लैट का मामला लटक जाएगा। देशभर में करीब 575,900 यूनिट्स का काम देरी से चल रहा है। एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन यूनिट्स में करीब 4.64 लाख करोड़ रुपये फंसे हैं। ये यूनिट्स एनसीआर, मुंबई, पुणे, कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नै और हैदराबाद में 2013 में या उससे पहले लॉन्च की गई थीं। इनमें से करीब 210,000 यूनिट्स मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन में और 200000 यूनिट्स एनसीआर में हैं। मुंबई में 2.34 लाख करोड़ और दिल्ली में 1.26 लाख करोड़ रुपये इनमें अटके हैं। वहीं रियल एस्टेट रिसर्च ऐंड ऐनालिटिक्स फर्म प्रॉपइक्विटी का कहना है कि देशभर में हाउसिंग प्रॉजेक्ट्स में 3.3 लाख करोड़ रुपये के 4.65 लाख से ज्यादा फ्लैट्स बहुत देरी से चल रहे हैं।

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