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बठिंडा में चंदा करके चुनाव मेें उतरी दो किसानों की विधवाएं

चुनाव लडऩे का उद्देश्य संसद तक बेबसों की सिसकियां पहुंचाना
बठिंडा। पंजाब में भारी कर्ज से दबे किसानों की आत्महत्या का मुद्दा पिछले विधानसभा चुनाव में खूब उठा था। इसके बाद यह मामला राजनीति के गलियारों में खोकर रह गया और ऐसे किसानों के परिवारों की वेदना सियासी खेल में दब गई। ऐसे में आत्महत्या करने वाले दो किसानों की विधवाओं ने कदम बढ़ाया है। उन्होंने किसान संगठनों की मदद से 10-10, 20-20 रुपये इक_ा किए और बठिंडा लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया। नामांकन दाखिल करने वाली वीरपाल कौर और मनजीत कौर का कहना है कि उन्होंने यह कदम  किसानों की दुर्दशा और खुदकुशी करने वाले किसानों के परिवार की पीड़ा व सिसकियों को संसद तक पहुंचाने के लिए उठाया है।
वीरपाल और मनजीत कौर के बठिंडा लोकसभा सीट से नामांकन पत्र दाखिल करने से यहां चुनावी माहौल गर्मा गया है। इससे शिअद की प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल और कांग्रेस प्रत्याशी अमरिंदर सिंह राजा वडिंग के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।
वीरपाल और मनजीत का कहना है कि सरकार की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं दी गई। अगर वह चुनाव जीत कर संसद में पहुंची तो उनका एकमात्र मकसद किसान परिवारों का दर्द और गरीबों की आवाज संसद में पहुंचाने की होगी।
 उन्होंने कहा कि बड़ी पार्टियों ने वादे करने के बाद कोई भी मदद नहीं दी, इसीलिए उन्होंने चुनाव लडऩे की सोची है। नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन दोनों के साथ 100 से ज्यादा पीडि़त परिवारों के लोग शामिल हुए। इस दौरान उनके द्वारा नामांकन दाखिल करने के लिए जमानत के तौर पर जमा करवाई 25 हजार रुपये की राशि भी गांवों से इक_ी की है। राशि इक_ी करने में किसान मजदूर खुदकशी पीडि़त परिवार कमेटी का काफी सहयोग रहा। गांवों से उनको किसी ने 10, 20 , 50 तो किसी ने 100 रुपये दिए।
प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री दविंदर शर्मा कहते हैैं कि आज अगर ये किसान यूनियनें या किसान परिवार इनका साथ नहीं देते तो कल ये इस बात की शिकायत न करें कि सरकारों में इनकी कोई सुनवाई नहीं होती। देश के किसान एक बड़े संकट का सामना कर रहे हैं और उस मुद्दे को इन्होंने तमाम मजबूरियों के बावजूद जिंदा रखने की कोशिश की है।
वीरपाल के पिता, पति व ससुर ने की आत्महत्या
गांव रल्ला की वीरपाल कौर के ससुर नछत्तर ने 1990 में फंदा लगा लिया था। पिता कृष्ण ने 1995 सेल्फॉस निगल कर व पति धर्मवीर ने खुद को आग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। परिवार पर कर्ज होने के कारण जो जमीन थी वह बेचनी पड़ी। आज वीरपाल अपने बेटे व बेटी के साथ मायके गांव रल्ला में रह रही है, जबकि उसकी ससुराल बठिंडा के गांव महमा सरजा में है।
वीरपाल का कहना है कि उन्हें सरकार की ओर से आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए दी जाने वाली सहायता राशि भी नहीं दी गई है और न ही मौजूदा सरकार ने किसानों का पूरा कर्ज माफ करने की नीति का कोई लाभ मिला है। वीरपाल कौर ने कहा कि इस चुनाव में किसानों की आत्महत्या का मामला किसी भी राजनीतिक पार्टी के एजेंडे में नहीं है। न ही कोई नेता इस पर बात कर रहा है।


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