10 साल लगातार एमपी रहने के बावजूद गिनाने को कुछ नहीं
वोट के लिए कर रहे हैं पांच और दस साल पहले वाले वादे
श्रीगंगानगर। इस बार के लोकसभा चुनाव की दास्तां बड़ी अजीब है। अब तक चार बार और दस साल से लगातार सांसद रह चुके नेता के पास मतदाताओं के समक्ष गिनाने के लिए अपनी कोई उपलब्धि नहीं है। वह अपनी पार्टी के नेता के नाम पर वोट मांग रहे हैं। पुरानी उपलब्धि गिनाना तो दूर, करने के लिए नए वादे भी नहीं हैं। वही बासी और पुराने पड़ चुके वादे किए जा रहे हैं-मेडिकल कॉलेज बनवाएंगे। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी शुरू करवाएंगे। किसानों के हित का ख्याल रखेंगे वगैरह-वगैरह।
नेता भी जहां भी वोट मांगने गए, उनका भाषण सुनकर चंद समर्थकों ने ताली बजा दी तो नेता ने इसे जन समर्थन समझ लिया। नेता चाहे कुछ समझें या ना समझे, जनता जरूर सब कुछ समझ रही है। सोच-समझ कर ही वोट डालने का फैसला करेगी।
नेता भले ही जनता को नासमझ मानें लेकिन जनता समय-समय पर अपनी समझदारी दिखाती आई है। श्रीगंगानगर में 40 साल की राजनीति के बाद राधेश्याम गंगानगर ने जो मुकाम हासिल किया, उसे जनता ने छीनकर 40 दिन पहले सक्रिय हुई कामिनी जिंदल को दे दिया। फिर जब कामिनी जिंदल को जनता ने अपनी आकांक्षाओंं पर खरा नहीं पाया तो उनकी जमानत जब्त करते देर नहीं लगाई। इस बार विधानसभा चुनाव में जनता ने निर्दलीय राजकुमार गौड़ को जिता कर भाजपा और कांग्रेस का घमंड चूर-चूर कर कर दिया।
जब-जब जनता को लगता है नेता का दिमाग आसमान पर पहुंच रहा है, जनता ऐसे नेताओं को धरातल पर पहुंचाते देर नहीं लगाती। जब राधेश्याम गंगानगर के प्रति जनता को कुछ महसूस हुआ तो जनता ने सुरेन्द्र सिंह राठौड़ को विधायक बनाते देर नहीं लगाई। इस बार विधानसभा चुनाव में करणपुर में सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी की हार का उदाहरण सबके सामने है। करणपुर में क्या चुनाव परिणाम निकलने वाला है, यह पहले ही सबको मालूम पड़ गया था। जनता ने कुछ नहीं छिपाया। साफ तौर पर संकेत पहले ही दे दिए। सूरतगढ़ और सादुलशहर में जब नेताओं ने अपनी भावी पीढ़ी को सत्ता विरासत में सौंपनी चाही तो जनता ने उन्हें सबक सिखाते देर नहीं की। लोकसभा चुनाव में नेताओं का जो दंभ नजर आ रहा है, वह हैरान कर देने वाला है। मेरे सिवाय कौन है जिसको पार्टी टिकट दे सकती है जैसी टिप्पणी करके नेता ने साबित कर दिया था कि घमंड तो उनमें रावण से भी ज्यादा है। क्या जनता को पता नहीं कि नेता जो वादे चुनाव मेंं वोट हासिल करने के लिए कर रहे हैं, वह पांच और दस साल पहले भी किए गए थे। जनता सब देख रही है और सब समझ रही है। जनता की समझ पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।
श्रीगंगानगर। इस बार के लोकसभा चुनाव की दास्तां बड़ी अजीब है। अब तक चार बार और दस साल से लगातार सांसद रह चुके नेता के पास मतदाताओं के समक्ष गिनाने के लिए अपनी कोई उपलब्धि नहीं है। वह अपनी पार्टी के नेता के नाम पर वोट मांग रहे हैं। पुरानी उपलब्धि गिनाना तो दूर, करने के लिए नए वादे भी नहीं हैं। वही बासी और पुराने पड़ चुके वादे किए जा रहे हैं-मेडिकल कॉलेज बनवाएंगे। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी शुरू करवाएंगे। किसानों के हित का ख्याल रखेंगे वगैरह-वगैरह।
नेता भी जहां भी वोट मांगने गए, उनका भाषण सुनकर चंद समर्थकों ने ताली बजा दी तो नेता ने इसे जन समर्थन समझ लिया। नेता चाहे कुछ समझें या ना समझे, जनता जरूर सब कुछ समझ रही है। सोच-समझ कर ही वोट डालने का फैसला करेगी।
नेता भले ही जनता को नासमझ मानें लेकिन जनता समय-समय पर अपनी समझदारी दिखाती आई है। श्रीगंगानगर में 40 साल की राजनीति के बाद राधेश्याम गंगानगर ने जो मुकाम हासिल किया, उसे जनता ने छीनकर 40 दिन पहले सक्रिय हुई कामिनी जिंदल को दे दिया। फिर जब कामिनी जिंदल को जनता ने अपनी आकांक्षाओंं पर खरा नहीं पाया तो उनकी जमानत जब्त करते देर नहीं लगाई। इस बार विधानसभा चुनाव में जनता ने निर्दलीय राजकुमार गौड़ को जिता कर भाजपा और कांग्रेस का घमंड चूर-चूर कर कर दिया।
जब-जब जनता को लगता है नेता का दिमाग आसमान पर पहुंच रहा है, जनता ऐसे नेताओं को धरातल पर पहुंचाते देर नहीं लगाती। जब राधेश्याम गंगानगर के प्रति जनता को कुछ महसूस हुआ तो जनता ने सुरेन्द्र सिंह राठौड़ को विधायक बनाते देर नहीं लगाई। इस बार विधानसभा चुनाव में करणपुर में सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी की हार का उदाहरण सबके सामने है। करणपुर में क्या चुनाव परिणाम निकलने वाला है, यह पहले ही सबको मालूम पड़ गया था। जनता ने कुछ नहीं छिपाया। साफ तौर पर संकेत पहले ही दे दिए। सूरतगढ़ और सादुलशहर में जब नेताओं ने अपनी भावी पीढ़ी को सत्ता विरासत में सौंपनी चाही तो जनता ने उन्हें सबक सिखाते देर नहीं की। लोकसभा चुनाव में नेताओं का जो दंभ नजर आ रहा है, वह हैरान कर देने वाला है। मेरे सिवाय कौन है जिसको पार्टी टिकट दे सकती है जैसी टिप्पणी करके नेता ने साबित कर दिया था कि घमंड तो उनमें रावण से भी ज्यादा है। क्या जनता को पता नहीं कि नेता जो वादे चुनाव मेंं वोट हासिल करने के लिए कर रहे हैं, वह पांच और दस साल पहले भी किए गए थे। जनता सब देख रही है और सब समझ रही है। जनता की समझ पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।
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