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भावों को शुद्ध करने का प्रयोग है ध्यान

- अध्यात्म साधना केन्द्र के मानद निदेशक केसी जैन से एसबीटी की विशेष बातचीत
श्रीगंगानगर। अध्यात्म साधना केन्द्र के तत्वावधान में सत्रह फरवरी को श्रीगंगानगर में प्रेक्षा ध्यान शिविर का आयोजन किया जाएगा। शिविर के आयोजन की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इन्हीं तैयारियों के बीच अध्यात्म साधना केन्द्र के मानद निदेशक केसी जैन से इस संवाददाता ने बातचीत की। बातचीत में जैन ने प्रेक्षा ध्यान के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। प्रस्तुत हैं बातचीत के खास अंश:
- ध्यान का स्वास्थ्य से क्या संबंध है?
-देखिए, हमारा शरीर तीन बातों भोजन, जीवन शैली और भाव से सर्वाधिक प्रभावित होता है। गहराई से देखा जाए तो जितना असर भाव का है, उतना किसी भी चीज का नहीं है। पांच मिनट के गुस्से के कारण व्यक्ति को लकवा मार सकता है और पांच मिनट के आघात से हार्ट अटैक, बेहोशी का खतरा रहता है। भावों की गति बहुत तेज होती है। बारीकी से देखें तो भाव निरंतर हमारे साथ रहते हैं। कभी थोड़ा गुस्सा, कभी थोड़ा प्रेम, कभी थोड़ी घृणा यह हमारे भावों का हिस्सा है। मेडिकल साइंस में ट्रीटमेंट शारीरिक होता है, भावात्मक नहीं होता। भावात्मक उपचार की कोई दवा नहीं है। ध्यान की सारी क्रिया अन्तर्मन पर जा कर भावों को शुद्ध करने का प्रयोग है। जैसे ही भावों की शुुद्धि होती है, उससे एक तरफ हमारा शरीर शुद्ध होता है तो दूसरी तरफ शरीर स्वस्थ होता है।
- क्या केवल प्रेक्षा ध्यान ही प्रयोग है, भोजन या आसन, प्राणायाम का कोई रोल नहीं है?
-नहीं ऐसा नहीं है। भोजना या आसन प्राणायाम का महत्वपूर्ण रोल है लेकिन केवल भोजन, आसन प्राणायाम भावों की शुद्धि नहीं करते। ये केवल ध्यान की पूर्व तैयारी के प्रयोग हैं। इसलिए हम केवल ध्यान की तैयारी के लिए ही नहीं रुक जाएं, जिस लक्ष्य के लिए तैयारी की है वहां तक पहुंचें। हमारा लक्ष्य है भावों की शुद्धि।
- आप कैसे कहते हैं कि भावों से हमारा शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है?
-आज तक हुए वैज्ञानिक शोधों से प्रमाणित हुआ है कि नब्बे फीसदी बीमारियां हैं ही भीतर के स्तर की। जैसे ब्लड प्रेशर का मूल कारण क्रोध में छिपा है। हार्ट अटैक और डायबिटिज का मूल कारण भय में छिपा है। अगर हम भय, क्रोध जैसे भावों का उपचार कर पाएं तो शरीर का उपचार स्वत: ही हो जाएगा।
- ध्यान आत्मा की उन्नति के लिए माना जाता है, इसमें स्वास्थ्य की बात कहां से आ गई?
-हमें शरीर और आत्मा को अलग करके नहीं देखना चाहिए। शरीर और आत्मा एक-दूसरे पर अन्त: निर्भर हैं। शरीर का प्रभाव भीतर और भीतर का प्रभाव शरीर पर होता है। इसलिए जहां हम भोजन, आसन प्राणायाम की बात करते हैं, वहीं अन्तर्मन की शुद्धि के लिए ध्यान की बात करते हैं। ध्यान का प्रयोग सर्वांगीण स्वास्थ्य का प्रयोग है। ध्यान एक पक्ष को नहीं देखता। जीवन में जिस चीज की जितनी जरूरत है, उसे उतना मूल्य देता है।
- ध्यान के ऐसे कौनसे प्रयोग हैं, जिनसे स्वास्थ्य लाभ होता है?
अनेक प्रयोग हैं ऐसे। कायोत्सर्ग, श्वास प्रेक्षा, शरीर प्रेक्षा, लेश्या (रंग) ध्यान, अनु प्रेक्षा आदि ऐसे प्रयोग हैं, जिनसे स्वास्थ्य लाभ होता है।


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