हम शरीर नहीं आत्मा हैं कायोत्सर्ग के जरिए बढ़ता है यह अहसास
- अध्यात्म साधना केन्द्र के मानद निदेशक और आयकर विभाग के रिटायर प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर केसी जैन से एसबीटी की विशेष बातचीत
श्रीगंगानगर। अध्यात्म साधना केन्द्र के तत्वावधान और सांध्य बॉर्डर टाइम्स की मीडिया पार्टनरशिप में श्रीगंगानगर मेंं सत्रह फरवरी को प्रेक्षा ध्यान शिविर का अनूठा आयोजन किया जा रहा है। इस शिविर में लोग प्रेक्षा ध्यान के जरिए स्वस्थ होना सीख सकेंगे। एसबीटी संवाददाता ने अध्यात्म साधना केन्द्र के मानद निदेशक और आयकर विभाग के रिटायर प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर केसी जैन से विशेष बातचीत कर प्रेक्षा ध्यान के एक अंग कायोत्सर्ग के बारे में जाना। प्रस्तुत हैं खास अंश:
2 प्रेक्षा ध्यान का एक अंग कायोत्सर्ग क्या है?
- कायोत्सर्ग पे्रक्षा ध्यान की सबसे महत्वपूर्ण विधा है। यह प्रेक्षा ध्यान का प्रारंभ बिंदू है और अंतिम बिंदू भी है। प्रेक्षा ध्यान के जितने भी अंग हैं, वह इसी रास्ते से गुजरते हैं। इसका अर्थ काया का उत्सर्ग है। इसके जरिए शरीर और आत्मा की भिन्नता को देखा जाता है। इसके जरिए ये अनुभव किया जाता है कि मैं शरीर नहीं, आत्मा हूं। जैसे-जैसे यह बोध बढ़ता है, वैसे-वैसे शरीर के प्रति मोह छूटने लगता है। अपने चैतन्य के प्रति जागृति बढऩे लगती है। चूंकि हमारा ध्यान अधिकतर शरीर पर केन्द्रीत रहता है, इसलिए हम आत्मा की अनंत ऊर्जा को देख नहीं पाते हैं। कायोत्सर्ग आत्मा से साक्षात्कार करने की प्रक्रिया है।
2 कायोत्सर्ग की विधि क्या है?
- कायोत्सर्ग के तीन अंग शरीर का शिथिलीकरण यानी तनाव मुक्त बनाना, आत्म सूचन के द्वारा श्वास को मंद करना और विचारों को शांत करना है। एक तरह से तीनों चीजें एक साथ घटित होती हैं। जैसे ही शरीर शिथिल होगा, श्वास मंद हो जाएगा, विचार शांत होने लगेंगे। यह अवस्था जितनी सघन होगी, उतनी ही एकाग्रता आएगा, चैतन्य के साथ जुड़ाव बढ़ेगा।
2 कायोत्सर्ग का स्वास्थ्य से क्या संबंध है?
- अस्वास्थ्य, अस्वास्थ्य का सबसे पहला प्रभाव हमारे शरीर पर, हमारे श्वास पर, हमारे विचारों की श्रृंखला पर पड़ता है। जब उनमें तनाव उत्पन्न होता है, मांसपेशिया जकडऩे लगती हैं। श्वास अनियंत्रित और छोटा हो जाता है। विचारों की श्रृंखला तेज हो जाती है। यह कुचक्र टूटने लगता है। हम भीतर और बाहर से स्वास्थ्य से जुडऩे लगते हैं।
श्रीगंगानगर। अध्यात्म साधना केन्द्र के तत्वावधान और सांध्य बॉर्डर टाइम्स की मीडिया पार्टनरशिप में श्रीगंगानगर मेंं सत्रह फरवरी को प्रेक्षा ध्यान शिविर का अनूठा आयोजन किया जा रहा है। इस शिविर में लोग प्रेक्षा ध्यान के जरिए स्वस्थ होना सीख सकेंगे। एसबीटी संवाददाता ने अध्यात्म साधना केन्द्र के मानद निदेशक और आयकर विभाग के रिटायर प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर केसी जैन से विशेष बातचीत कर प्रेक्षा ध्यान के एक अंग कायोत्सर्ग के बारे में जाना। प्रस्तुत हैं खास अंश:
2 प्रेक्षा ध्यान का एक अंग कायोत्सर्ग क्या है?
- कायोत्सर्ग पे्रक्षा ध्यान की सबसे महत्वपूर्ण विधा है। यह प्रेक्षा ध्यान का प्रारंभ बिंदू है और अंतिम बिंदू भी है। प्रेक्षा ध्यान के जितने भी अंग हैं, वह इसी रास्ते से गुजरते हैं। इसका अर्थ काया का उत्सर्ग है। इसके जरिए शरीर और आत्मा की भिन्नता को देखा जाता है। इसके जरिए ये अनुभव किया जाता है कि मैं शरीर नहीं, आत्मा हूं। जैसे-जैसे यह बोध बढ़ता है, वैसे-वैसे शरीर के प्रति मोह छूटने लगता है। अपने चैतन्य के प्रति जागृति बढऩे लगती है। चूंकि हमारा ध्यान अधिकतर शरीर पर केन्द्रीत रहता है, इसलिए हम आत्मा की अनंत ऊर्जा को देख नहीं पाते हैं। कायोत्सर्ग आत्मा से साक्षात्कार करने की प्रक्रिया है।
2 कायोत्सर्ग की विधि क्या है?
- कायोत्सर्ग के तीन अंग शरीर का शिथिलीकरण यानी तनाव मुक्त बनाना, आत्म सूचन के द्वारा श्वास को मंद करना और विचारों को शांत करना है। एक तरह से तीनों चीजें एक साथ घटित होती हैं। जैसे ही शरीर शिथिल होगा, श्वास मंद हो जाएगा, विचार शांत होने लगेंगे। यह अवस्था जितनी सघन होगी, उतनी ही एकाग्रता आएगा, चैतन्य के साथ जुड़ाव बढ़ेगा।
2 कायोत्सर्ग का स्वास्थ्य से क्या संबंध है?
- अस्वास्थ्य, अस्वास्थ्य का सबसे पहला प्रभाव हमारे शरीर पर, हमारे श्वास पर, हमारे विचारों की श्रृंखला पर पड़ता है। जब उनमें तनाव उत्पन्न होता है, मांसपेशिया जकडऩे लगती हैं। श्वास अनियंत्रित और छोटा हो जाता है। विचारों की श्रृंखला तेज हो जाती है। यह कुचक्र टूटने लगता है। हम भीतर और बाहर से स्वास्थ्य से जुडऩे लगते हैं।

No comments