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साइकिल नहीं वे चुराते हैं बच्चें का सपना

- पुलिस की नालायकी से मायूस होता बचपन
श्रीगंगानगर (एसबीटी)। अपनी खुद की साइकिल पर घूमना, स्कूल जाना और मस्ती करना, यह सपना हर बालक देखता है। अपना यह सपना पूरा करने के लिए बच्चों को जिद्द करनी पड़ती है। बच्चों का यह सपना पूरा करने के लिए मां-बाप को भी आर्थिक परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है, लेकिन जब बच्चों का यही सपना चोरी हो जाता है तो मासूमों के चेहरे मुरझा जाते हैं।
हर मां-बाप अपने बच्चे को अपनी हैसीयत के हिसाब से साइकिल दिलवाते हंै और यही साइकिल रूपी सपना जब चोरी होता है तो भावनाएं मुरझाये चेहरों से आंसुओं के रूप में बहने लगती हैं, परंतु पुलिस को इन भावनाओं से इत्तेफाक नहीं रहता। इसी कारण साइकिल चोरी के अधिकतर मामलों में पुलिस थानों में मुकदमे दर्ज नहीं होते। पुलिस की ऐसी कार्यप्रणाली का मासूम बचपन पर भी कहीं न कहीं असर रहता है। कुछ बच्चे इस सदमे से उबर जाते हैं, जबकि कुछ के मन पर इसका गहरा आघात रहता है। कोई अप्रोच लगा ले तो भले ही उसकी साइकिल चोरी होने का मुकदमा दर्ज कर लिया जाये, वरना तो पुलिस मोटरसाइकिल चोरी का मुकदमा भी आसानी से दर्ज नहीं करती। यदि दर्ज करती भी है, तो वह भी अपने खाते पूरे करने के लिए तब, जब पुलिस के रिकॉर्ड में अन्य मुकदमों की संख्या नगण्य रहती है। कागजों का पेट भरने के लिए पुलिस साइकिल व मोटरसाइकिल चोरी के मुकदमे तो दर्ज करती है, परंतु चोरी हुए वाहनों की तलाश के प्रयास नहीं।
बीते रोज गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस एक बड़े साइकिल चोर गिरोह का भंडाफोड़ कर भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो, परंतु इसके पीछे भी पुलिस अपनी वह नालायकी छिपाने का प्रयास कर रही है, जिसके चलते पुलिस ने दर्जनों साइकिल चोरी के मुकदमे ही दर्ज नहीं किये। यदि पुलिस समय रहते बच्चों की साइकिल चोरी का मुकदमा  दर्ज करती तो मासूमों का सपना फिर से समय पर पूरा हो जाता। जाने पुलिस की नालायकी के कारण कितने ही बच्चों का साइकिल चलाने का सपना अधूरा रहा होगा और कितने ही बच्चे अब भी चोरी हुई अपनी साइकिल मिलने के इंतजार में मन मसोस कर बैठे होंगे।


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