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होलाष्टक आरंभ, अब होलिका दहन तक नहीं होंगे मांगलिक कार्य

होली से पहले होलाष्टक आज मंगलवार से शुरू हो गए हैं। होलाष्टक 9 मार्च तक रहेंगे। इस दौरान कोई शुभ एवं मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकेंगे।
पंडित सत्यपाल पाराशर ने बताया कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के प्रथम दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है।
उन्होंने बताया कि होलिका दहन के बाद ही कोई भी शुभ कार्य का आरंभ करना चाहिए। इस बार होलिका दहन 9 मार्च को होगा और 10 मार्च को होली खेली जाएगी।
जानिए, होलाष्टक के बारे में
पंडित पाराशर के अनुसार फाल्गुन माह में शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की आठ दिनों की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। मान्यता है कि होलाष्टक की शुरुआत वाले दिन ही भगवान शिव ने तपस्या भंग करने पर कामदेव को भस्म कर दिया था। कहा जाता है कि होली के पहले के आठ दिनों तक भक्त प्रहलाद को काफी यातनाएं दी गई थीं। जब होलिका ने प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो वो खुद जल गई और प्रहलाद बच गए। प्रहलाद पर आए इस संकट के कारण इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है।
होलाष्टक में ग्रह होते हैं उग्र रूप में
होलाष्टक के दौरान हर दिन अलग-अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं। इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इन दिनों में नकारात्मक ऊर्जा ज्यादा प्रभावी रहती है। यह समय होलिका दहन के साथ ही समाप्त हो जाता है। होलाष्टक के आठ दिनों में शादी, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, मांगलिक कार्य, कोई भी नया व्यवसाय या नया काम शुरू करने से बचना चाहिए। नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ भी इन दिनों में नहीं किया जाता है। इन दिनों विवाह संस्कार किए जाने से रिश्तों में अस्थिरता बनी रहती है। इस अवधि में तप और दान करना अच्छा रहता है। 

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