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सभापति चुने जाने के लिए पार्षद होना आवश्यक नहीं

- जनबल पर फिर भारी पड़ेगा धन बल, राज्य सरकार ने पहले किया था इस नियम से इनकार
श्रीगंगानगर। निकाय चुनाव शुरु होने से पूर्व राज्य सरकार ने नगरपालिका अध्यक्ष बनने के लिए गैर निर्वाचित पार्षद को भी पात्र मानने के संकेत दिए थे। इसका विरोध हुआ तो बैकफुट पर आई सरकार ने पार्षद की अनिवार्यता बहाल रखने की बात कही, लेकिन हैरानीजनक है कि सरकार अपनी इस बात पर कायम नहीं रह सकी।
निर्वाचन विभाग ने जो परिपत्र जारी किए हैं उसके अनुसार सभापति पद के लिए पार्षद होना जरूरी नहीं है। साफ है कि जनबल पर फिर से धनबल भारी पड़ेगा।
इस बात की पुष्टि स्वायत्त शासन विभाग की ओर से 16 अक्टूबर को जारी अधिसूचना से होती है, जिसके अनुसार राजस्थान नगरपालिका (निर्वाचन) (चतुर्थ संशोधन) नियम, 2019 अंग्रेजी भाषा में जारी किए गए थे, का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया गया है।
इस हिन्दी अनुवाद में नगरपालिका अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी प्रावधानों का उल्लेख है। इसके तहत अध्यक्ष का निर्वाचन नियम (1) में लिखित है कि नगरपालिाका के अध्यक्ष का पद, नगरपालिका के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने गए व्यक्ति द्वारा किया जाएगा।
इसका स्पष्टीकरण देते हुए विभाग की ओर से कहा गया है कि निर्वाचित सदस्य से नगरपालिका के किसी वार्ड से निर्वाचित कोई सदस्य अभिप्रेत है।
कोई भी व्यक्ति अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के लिए या इस पद को धारण करने के लिए तब ही पात्र होगा, यदि वह इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन नगरपालिका के सदस्य के रूप में चुने जाने के लिए अर्हित हो और निरॢहत ना हो। इसका मतलब ये है कि नगरपालिका का अध्यक्ष बनने के लिए पार्षद यानि निर्वाचित सदस्य होना अनिवार्य नहीं है। चुनाव नहीं लडऩे वाला कोई भी व्यक्ति नगरपालिका अध्यक्ष के चुनाव में शामिल हो सकता है। बशर्ते कोई निर्वाचित पार्षद उसके नामांकन का प्रस्तावक बने।
राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जारी इस अधिसूचना का लब्बोलुआब ये है कि इसके बहाने से सरकार ने निकाय चुनावों में उन लोगों को भी बैकडोर से राजनीति में आने का मौका दिया है, जो सीधे तौर पर चुनाव लड़कर नहीं आ सकते हैं। दूसरे अर्थ में सरकार ने अंदरखाते गैर निर्वाचित पार्षदों के लिए भी निकाय अध्यक्ष बनने का रास्ता खोल दिया है।


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