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बाहुबल और धनबल को हराएगा जनबल तो ही बच पाएगा लोकतंत्र

नगर निकाय चुनाव 2019
श्रीगंगानगर। नगरपरिषद चुनाव में शुरू से ही धनबल और बाहुबल हावी रहा है, जोकि लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। जनबल धनबल को हराएगा तो ही लोकतंत्र बच पाएगा। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि जब धनबल के प्रभाव में आते हैं, तो जनता अपने आप को ठगा सा महसूस करती है।
विधानसभा चुनाव में जनता ने धनबल को पूरी तरह से परास्त कर दिया। यह जनबल की जीत मानी गई। चुनाव में जनता जिस किसी भी पार्टी उम्मीदवार को विजयश्री दिलाती है, तब वह उस पार्टी व व्यक्ति पर विश्वास व्यक्त करती है कि उक्त उम्मीदवार उनकी जन आकांक्षाओं और उम्मीदों पर खरा उतरेगा।
प्रत्याशी चुनाव के दौरान बड़े-बड़े वायदे भी करता है और पार्टियां भी टिकट वितरण से पहले जोर-शोर से यह कहती है कि इस बार वे टिकाऊ और जिताऊ उम्मीदवार को टिकट देंगी, लेकिन होता इसके उलट है।
पिछले चुनावों के अनुभव जनता को भलीभांति पता हैं। इसलिए इस बार जनता यह पूरी तरह से समझ चुकी है कि इन चुनावों में पार्टी का कोई महत्व नजर नहीं आता बल्कि उम्मीदवार भी यह सोचकर मैदान में उतरता है कि इसी बहाने ही सही, कुछ आर्थिक मंदी तो दूर की जाए। यही कारण है कि एक-एक वार्ड में कई उम्मीदवार निर्दलीय तौर पर भी ताल ठोके हुए हैं।
आश्चर्यजनक बात तो यह है कि पिछली बार नगरपरिषद चुनाव में एक पार्टी का बहुमत था और वह उस आधार पर आसानी से सभापति की कुर्सी पर अपने प्रत्याशी को बैठा सकती थी, लेकिन यहां बाहुबल और धनबल ने जनबल को पूरी तरह से परास्त किया और लोकतंत्र को कमजोर कर दिया। उस समय नगरपरिषद क्षेत्र के 50 वार्ड थे, जिसमें से धनबल ने 48 चुने हुए प्रतिनिधियों को इक_ा कर अपना बाहुबल और धनबल का प्रभाव दिखा दिया।
पांच सालों के दौरान शहर की जो गत हुई, वह किसी से छिपी नहीं है। चाहे सफाई व्यवस्था का मुद्दा हो या वर्षा के पानी निकासी का। लोगों ने जैसे-तैसे करके पांच साल निकाले। हैरानी की बात यह है कि अब भी वही स्थिति दोहराई जा सकती है। इसलिए जनता को जागरूक होने की जरूरत है।
राज्य में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, निकाय चुनाव में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि नगरपरिषद का बजट निर्धारित है और वह उसे मिलना ही है और उसमें कोई सरकारी अड़ंगा नहीं लगता।
जनता को चाहिए कि वह वार्ड में उस उम्मीदवार का चयन करे, जो उसके वार्ड के विकास को करवा सके। जन आकांक्षाओं की पूर्ति कर सके।
अगर जनता को लगे कि उनके वार्ड का उम्मीदवार जीतने पर किसी के हाथों की कठपुतली बनेगा तो उसे पहले ही धूल चटाएं। धन्ना सेठों के मंसूबे जड़ों से ही खत्म होने चाहिएं।


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