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ठोक बजा कर लें फैसला

- जो पांच साल भुगता, फिर न हो वैसा
श्रीगंगानगर। निकाय अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से पार्षदों से करवाने  के राज्य सरकार के फैसले के बाद भावी पार्षदों व दावेदारों की बाछें खिल गई हैं। ऐसे में अब जरूररत जनता के सजग होकर अपने वार्ड पार्षद को चुनने की है। वरना शहर के लोग फिर वही नर्क भोगने को मजबूर हो जाएंगे, जैसा पिछले पांच साल से भुगत रहे हैं।
पिछले नगर परिषद चुनाव में भी सभापति का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुआ था। सभी जानते हैं, तब  जनबल पर धनबल हावी रहा। नतीजा भाजपा, कांग्रेस व निर्दलीय सभी एक हो गए। परिणाम स्वरूप 50 में से 48 पार्षदों ने अजय चाण्डक को सभापति बना दिया।
उसके बाद से पार्षदों ने अविश्वास प्रताव के नाम पर जो खेल खेला किसी से छुपा नहीं है। सभापति को चुनते समय अधिकांश पार्षदों ने स्वहित को ऊपर रखा और जनता के प्रति अपना दायित्व भूल गए। कौन पार्षद सत्ता पक्ष में और कौन विपक्ष में है, यह आज तक कोई नहीं समझ पाया। जनता के चुने जनप्रतिनिधि अपने मतलब के लिए ही आपस में उलझते रहे।
इस बार ऐसा नहीं हो, इसके लिए अभी से आमजन को जागरूक हो जाना चाहिए। इस बार भी यदि पुराना पार्षद उम्मीदवार बनकर सामने आए तो उससे पिछले कार्यकाल में किए कार्यों व समस्याओं का समाधान नहीं हो पाने के बारे में जरूर सवाल करना चाहिए। वार्डवासियोंं को भी अपने पार्षद की गतिविधियों के आधार पर उसके कार्यकाल का आकलन करना चाहिए। उससे सवाल किया जाना चाहिए कि पिछले चुनाव के समय बोर्ड बनाने के लिए धनबल का जो खेल खेला गया, उसका विरोध क्यों नहीं किया। नए उम्मीदवार को भी ठीक उसी प्रकार ठोक बजा कर ही मतदान का निर्णय लेना चाहिए।
जैसे आम आदमी मिट्टी से बने मटके को परख कर खरीदता है। इसलिए नए उम्मीदवारों से चुनाव लडऩे के उद्देश्य व वार्ड के लिए विजन का पता लगाना चाहिए।
कहीं चुनाव जीत कर उम्म्मीदवार पिछले पार्षद की तरह कमीशन व हिस्सेदारी के चक्कर में वार्डवासियों व वार्ड की समस्याओं को नजरंदाज तो नहीं कर देगा। इस बारे में उम्मीदवारों से सीधा संवाद करना चाहिए।


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