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शिक्षकों के लंबित प्रकरण निपटाने के लिए हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर में लगेंगे शिविर

- संयुक्त निदेशक ने सभी सीडीईओ को दिए निर्देश
श्रीगंगानगर। शिक्षा विभाग में अवकाश, वेतन और विभागीय जांच संबंधित लंबित प्रकरणों के लिए शिक्षकों को अब विभाग के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। इनके लंबित प्रकरणों का निस्तारण मध्यावधि अवकाश में होगा। इसके लिए श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में जिला स्तर पर परिवेदना शिविर लगाए जाएंगे।
संयुक्त निदेशक स्कूल शिक्षा ने इस संबंध में बीकानेर मंडल के तीनों मुख्य जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं। संयुक्त निदेशक ने बीकानेर सहित हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर के सीडीईओ को मध्यावधि अवकाश में जिला स्तर पर परिवेदना निस्तारित शिविर लगाने के लिए निर्देश दिए हैं ताकि शिक्षकों के लंबित और बकाया प्रकरणों को पंजीबद्ध कर नियमानुसार निस्तारित किया जा सकेंगे।
परिवेदना शिविर के संबंध में संबंधित सीडीईओ को मध्यावधि अवकाश से पहले शिड्यूल जारी करना होगा। मध्यावधि अवकाश इसी माह 22 अक्टूबर से 2 नवंबर को है। अधिकारियों की ओर से समय-समय पर किए गए निरीक्षण में सामने आया है कि कर्मचारियों के प्रकरण अनावश्यक रूप से लंबित और बकाया पड़े हैं। जिससे शिक्षकों और कार्मिकों को परेशानी हो रही है। संयुक्त निदेशक ने कार्यालयाध्यक्षों को भी अधीनस्थ कार्मिकों के बकाया प्रकरणों को सक्षम स्तर पर शीघ्र निस्तारित करने के निर्देश दिए हंै।
स्कूलों में बिना अवकाश स्वीकृत कराए लंबे समय से अनुपस्थिति के प्रकरणों को भी संयुक्त निदेशक ने गंभीरता से लिया है। उन्होंने संबंधित सीडीईओ को इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही करने के लिए कहा है। वहीं अन्य विभागों में प्रतिनियुक्त कार्मिकों की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर मूल पद पर भेजने के पूर्व में निर्देश दिए गए थे। बावजूद इसके कई कार्मिक अभी भी प्रतिनियुक्ति पर है। संयुक्त निदेशक ने प्रतिनियुक्ति पर चल रहे कार्मिकों की रिपोर्ट भी मांगी है।
गंभीरता से लें तो ही फायदा
मध्यावधि अवकाश के दौरान परिवेदना शिविर के संबंध में संयुक्त निदेशक ने सीडीईओ को निर्देश तो दिए हैं। लेकिन ऐसे शिविरों का तभी लाभ मिल सकता है, जब इन्हे अधिकारी गंभीरता से ले। राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत के प्रांतीय कोषाध्यक्ष भूप सिंह कूकणा के अनुसार शिक्षकों का पुराना अनुभव है कि विभाग व अधिकारी ऐसे शिविरों को गम्भीरता से नहीं लेते। शिविर आयोजन का ओचित्य तभी है जब सभी इसे गम्भीरता से लें। अधिक से अधिक परिवेदनाओं को निस्तारण हों।


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