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कलक्टर साहिब...बताइए कैसे ऊंचा रहे झंडा हमारा?

- साढ़े ग्यारह लाख की लागत, परंतु तिरंगा गायब
श्रीगंगानगर में 14 अगस्त 2018 को जब सुखाडिय़ा सर्किल स्थित भारत माता चौक पर 110 फीट ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया तो हर शहरवासी का सर गर्व से ऊंचा हो गया। समूचे इलाके में इतना ऊंचा लहराने वाला यह पहला तिरंगा था। लोग-बाग इसे देखते तो तिरंगे पर गर्व करते लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि राष्ट्र के गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक तिरंगा भी सरकारी उदासीनता का शिकार हो गया है। इस तिरंगे को स्थापित किए तेरह महीने हो गए मगर इस अवधि में से तिरंगा चार महीने से भी कम समय तक लहरा पाया है। आज भी भारत माता चौक पर केवल डंडा ही है, तिरंगा कहीं दिखाई नहीं देता है।
यह ध्वज नगर विकास न्यास ने स्थापित किया था। अब यूं लगता है जैसे यूआईटी को इस बात से सरोकार ही नहीं है कि तिरंगा लहरा रहा है या नहीं! यूआईटी के प्रशासक का कार्यभार जिला कलक्टर के पास है। जिला कलक्टर भी यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहे कि कैसे हमारा तिरंगा ऊंचा रहे। सातों दिन अधिकारियों को तरह-तरह के निर्देश जारी करने वाले जिला कलक्टर पता नहीं क्यों तिरंगे के बारे मेंं एक अदद निर्देश जारी नहीं पा कर रहे हैं?
करीब साढ़े ग्यारह लाख रुपए की लागत से तैयार तिरंगा प्रोजेक्ट बिना सोचे-विचारे क्रियान्वित कर दिया गया, जिसका परिणाम सबके सामने है। तिरंगा फहराने के महज दो दिन बाद 16 अगस्त 2018 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन होने पर प्रोजेक्टक के क्रियान्वयन में रही कमियों की पोल खुल गई थी। तब लाख कोशिश करने पर भी तिरंगे को आधा नहीं झुकाया जा सका क्योंकि आधा झुकाने के लिए वहां कोई सिस्टम ही डवलप नहीं किया गया था। जब तिरंगा आधा नहीं झुका पाए तो क्या करते, पूरा ही उतार लिया। करीब दस दिन बाद तिरंगा फिर से फहराने लगे तो फहराना संभव नहीं हो पाया। उसके बाद एक महीने तक केवल 'डंडाÓ ही झूलता नजर आया।
स्थापित किए जाने के बाद से ज्यादातर समय तिरंगा लपेट कर ही रखा गया है। बरसात आने पर संबंधित अधिकारियों ने यह बहाना बना दिया कि पानी में भीगकर ध्वज भारी हो जाता है। इसके गिरने की आशंका से उतरवा कर रखा गया है। अधिकारियों ने मौसम साफ होने पर फिर से फहराने की बात तो कही मगर ऐसा किया किसी ने नहीं।
यह झंडा रात को नजर आए, इसके लिए विशेष लाइटिंग सिस्टम लगाया गया, जो आज तक कभी ऑन ही नहीं हुआ। ध्वज को फहराना ही संभव नहीं हो रहा है। वह भी तब, जब तिरंगे के रखरखाव के लिए एक फर्म को दो साल का ठेका दिया गया है। किसी ने संंबंधित फर्म की जवाबदेही तय करने की मशक्कत नहीं की है।
देश के स्वाभिमान के प्रतीक तिरंगे से जुड़े मसले पर प्रशासन का जब यह रवैया है तो अन्य मामलों में कैसी संवेदनशीलता होती होगी, अंदाजा लगा पाना मुश्किल नहीं है।


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