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ऐसा हुआ तो जनता को पहुंचेगी ठेस, कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा खमियाजा

- संभावित हार को जीत में बदलने के लिए सीधे चुनाव का प्रावधान बदलना चाहती है सरकार
श्रीगंगानगर। दिसम्बर में सत्ता संभालते ही अशोक गहलोत सरकार ने जिन महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर लगाई थी, उनमें नगर निगमों के मेयर, नगर परिषदों के सभापति और नगर पालिकाओं के अध्यक्ष सीधे मतदाताओं द्वारा चुने जाने का फैसला प्रमुख था। सरकार ने इस फैसले के जरिए एक बार फिर यह प्रावधान कर दिया था कि स्थानीय निकाय अध्यक्ष का चुनाव अब वार्ड पार्षद नहीं, बल्कि मतदाता प्रत्यक्ष मतदान के जरिए करेंगे। सरकार के इस फैसले का जनता ने स्वागत किया था लेकिन अब जनता में निराशा का भाव जागने लगा है। इसकी वजह सरकार द्वारा स्थानीय निकाय अध्यक्ष का चुनाव फिर से पार्षदों के जरिए करने की तैयारियां होना हैं।
 संभावना है कि जल्द ही सरकार इस बारे में निर्णय कर अध्यक्ष चुनने का अधिकार पार्षदों को दे देगी। पहले-पहले इस बारे में खबरें आईं तो किसी ने यकीन नहीं किया कि चंद महीनों में सरकार अपना ही फैसला बदलने जा रही है लेकिन अब सीएम अशोक गहलोत ने खुद इस बारे में संकेत दे दिए हैं तो अविश्वास करने की कोई वजह नहीं है।
सरकार के पास अधिकार है, वह जो चाहे वह फैसला कर सकती है लेकिन यह तय है कि पार्षदों के जरिए अध्यक्ष चुनने की व्यवस्था जनता को किसी भी सूरत में पसंद नहीं आएगी क्योंकि जनता जानती है कि ऐसा होने पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा, जिसके पास पैसा होगा वह कुर्सी पर काबिज हो जाएगा। बाद में जिसे मौका मिलेगा, वह कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए हटवा कर कुर्सी पर काबिज हो जाएगा।
इस तरह की 'लीलाएंÓ लोग सालों से देखते चले आ रहे हैं। इन चीजों से लोग निराश हो चुके हैं। वह उनका दोहराव नहीं चाहते। फिर भी सरकार अगर पार्षदों को खुला खेलने का अवसर देना ही चाहती है तो देगी ही। ऐसा होने पर जनता को तो निराशा बाद में होगी लेकिन लगता है सरकार अभी से निराशा में घिर गई है। कांग्रेस को लग रहा है कि अगर सीधे मतदाताओं से चुनाव करवाया गया तो उसे करारी हार का सामना करना पड़ेगा। संभावित हार से बचने के लिए कांग्रेस सरकार प्रत्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया को बदलना चाह रही है ताकि पार्षदों के जोड़-तोड़ के सहारे स्थानीय निकायों मेंं अपना अधिपत्य कायम कर सके।
सरकार अगर यह फैसला करेगी तो यकीनन यह जनता को ठेस पहुुंचाने वाला फैसला होगा। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा।


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