अभी बढ़ेगा लघु समाचार पत्रों का संकट
- विभिन्न मुद्दों पर प्रख्यात पत्रकार राहुलदेव से चर्चा
श्रीगंगानगर। राहुल देव! प्रख्यात पत्रकार। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की एक ऐसी शख्शियत जो अपने अलग तेवर के लिए पहचानी जाती है। वे रविवार और सोमवार दो दिन श्रीगंगानगर के दौरे पर थे। इस दौरान उनसे कई बार विभिन्न मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई। कई उम्दा बातें तो हास-परिहास में ही निकल पड़ीं। उनसे बातचीत में पता चला कि वे जितने बड़े पत्रकार हैं, उतने ही सहज, सरल और हंसमुख इंसान हैं। अनौपचारिक बातचीत में कई गंभीर मुद्दों पर उनके विचार जानने को मिले तो कुछ गलतफहमियां दूर हुई, कुछ चिंताओं ने घेरा तो कुछ साहस बंधा कि दुनिया अभी इतनी बुरी भी नहीं है। पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं कुछ झलकियां-
अखबारों के लिए संकट
चर्चा के दौरान जब मैंने पूछा कि दिनों दिन समाचार पत्रों में सरकारी विज्ञापन में कटौती हो रही है। अखबारी कागज के दाम बढ़ाए जा रहे हैं, इससे लघु एवं मध्यम समाचार पत्र संकट में हैं, तो वे चिंतित स्वर में कहते हैं-अभी यह संकट और बढ़ेगा। मुझे नहीं लगता कि लघु एवं मध्यम वर्ग के समाचार पत्रों के अच्छे दिन जल्दी आ पाएंगे।
'तो क्या आप इस मामले में पूरी तरह निराश है?Ó
इस सवाल पर उनके चेहरे पर चिंता और निराश के भाव आते दिखते हैं। वे हां में सिर हिलाते हैं और फिर कहते हैं, इनके बचने का एक ही तरीका है कि वे कुछ अलग तरह का, कुछ नए तेवर और फ्लेवर का काम करें।
मातृभाषा से प्रेम
कार्यक्रम के बाद लोगों की भीड़ जब उनके साथ सेल्फी लेने का प्रयास कर रही थी तो उन्होंने कहा-अरे भई, आप लोग सेल्फी लिये जा रहे हैं, जबकि मेरे साथ सेल्फी लेने की एक कीमत चुकानी पड़ती है। सुनकर सब हंसने लगे लेकिन सेल्फी लेेने का क्रम जारी रहा। फिर उन्होंने मुझसे पूछा आपने कीमत पूछी नहीं?
मैंने कहा, 'जी जिज्ञासा तो जागी, पर आप व्यस्त थे।Ó
वे बोले, 'यह कीमत एक शपथ है, कि आज के बाद मैं अपने हस्ताक्षर अपनी मातृभाषा में करूंगा!Ó
इसी तरह जब शाम को $गज़ल गायक जगजीतसिंह की जन्मस्थली जी-25, सिविल लाइन्स, श्रीगंगानगर पहुंचे और बात चली तो मैंने कहा, 'जगजीत के फादर चाहते थे कि ...Ó
राहुलदेव ने मुझे टोका, 'फादर नहीं, पिता!Ó
मैंने कहा, 'फिर तो मैं पिता भी नहीं कहकर कहूंगा 'बापूÓ!Ó
मेरे जवाब से वे इतने प्रसन्न हुए और पंजाबी में बोले, 'ऐही तां मैं चाहूंदा हां। बापू ही होणा चाइदा है!Ó
आपको बता दें, राहुलदेव मूलत: पंजाबी हैं। उनका जन्म जलंधर में हुआ। बाद में परिवार लखनऊ जा बसा। अब वे गुरुग्राम में निवास करते हैं।
त्रिभाषा फार्मूले के पक्षधर
अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर करने वाले राहुलदेव ने हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पत्रकारिता की। वे सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं लेकिन किसी भी देश में त्रिभाषा फार्मूले के पक्षधर हैं। उनका कहना है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम में भी यह बात कही गई है कि बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। मातृभाषा हम सबके लिए बहुत जरूरी है। साथ ही राजभाषा और समय के अनुसार अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी जरूरी है लेकिन अंग्रेजी हम पर हावी नहीं होने चाहिए।
किसी भी भाषा के विरोधी नहीं
जब मैंने उनसे कहा कि आपने राजस्थानी भाषा को मान्यता का विरोध किया है तो उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी भी क्षेत्रीय भाषा के विरोधी नहीं हैं। राजस्थानी के तो कतई नहीं। मैं तो मातृभाषा को प्रोत्साहित करने की बात करता हूं।
आठवीं अनुसूची में अब और नहीं...
बातचीत में राहुल देव ने स्पष्ट किया कि वे अब आठवीं अनुसूची में कोई भी और भाषा शामिल करने के विरोध में हैं। इसका कारण यह है कि भारत भर में हम सब अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं के लड़ रहे हैं, जबकि अंग्रेजी लगातार अपना वर्चस्व बढ़ाती चली जा रही है। आज हर घर में लोग बच्चों पर अंग्रेजी लादना चाहते हैं। इससे क्षेत्रीय भाषाओं के साथ हिंदी को भी बड़ा खतरा है। मैं हिंदी का भी पक्षधर नहीं हूं, बस यही चाहता हूं कि अंग्रेजी का प्रभुत्व रुके और सभी मातृभाषाओं का विकास हो। इसके लिए वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
श्रीगंगानगर। राहुल देव! प्रख्यात पत्रकार। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की एक ऐसी शख्शियत जो अपने अलग तेवर के लिए पहचानी जाती है। वे रविवार और सोमवार दो दिन श्रीगंगानगर के दौरे पर थे। इस दौरान उनसे कई बार विभिन्न मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई। कई उम्दा बातें तो हास-परिहास में ही निकल पड़ीं। उनसे बातचीत में पता चला कि वे जितने बड़े पत्रकार हैं, उतने ही सहज, सरल और हंसमुख इंसान हैं। अनौपचारिक बातचीत में कई गंभीर मुद्दों पर उनके विचार जानने को मिले तो कुछ गलतफहमियां दूर हुई, कुछ चिंताओं ने घेरा तो कुछ साहस बंधा कि दुनिया अभी इतनी बुरी भी नहीं है। पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं कुछ झलकियां-
अखबारों के लिए संकट
चर्चा के दौरान जब मैंने पूछा कि दिनों दिन समाचार पत्रों में सरकारी विज्ञापन में कटौती हो रही है। अखबारी कागज के दाम बढ़ाए जा रहे हैं, इससे लघु एवं मध्यम समाचार पत्र संकट में हैं, तो वे चिंतित स्वर में कहते हैं-अभी यह संकट और बढ़ेगा। मुझे नहीं लगता कि लघु एवं मध्यम वर्ग के समाचार पत्रों के अच्छे दिन जल्दी आ पाएंगे।
'तो क्या आप इस मामले में पूरी तरह निराश है?Ó
इस सवाल पर उनके चेहरे पर चिंता और निराश के भाव आते दिखते हैं। वे हां में सिर हिलाते हैं और फिर कहते हैं, इनके बचने का एक ही तरीका है कि वे कुछ अलग तरह का, कुछ नए तेवर और फ्लेवर का काम करें।
मातृभाषा से प्रेम
कार्यक्रम के बाद लोगों की भीड़ जब उनके साथ सेल्फी लेने का प्रयास कर रही थी तो उन्होंने कहा-अरे भई, आप लोग सेल्फी लिये जा रहे हैं, जबकि मेरे साथ सेल्फी लेने की एक कीमत चुकानी पड़ती है। सुनकर सब हंसने लगे लेकिन सेल्फी लेेने का क्रम जारी रहा। फिर उन्होंने मुझसे पूछा आपने कीमत पूछी नहीं?
मैंने कहा, 'जी जिज्ञासा तो जागी, पर आप व्यस्त थे।Ó
वे बोले, 'यह कीमत एक शपथ है, कि आज के बाद मैं अपने हस्ताक्षर अपनी मातृभाषा में करूंगा!Ó
इसी तरह जब शाम को $गज़ल गायक जगजीतसिंह की जन्मस्थली जी-25, सिविल लाइन्स, श्रीगंगानगर पहुंचे और बात चली तो मैंने कहा, 'जगजीत के फादर चाहते थे कि ...Ó
राहुलदेव ने मुझे टोका, 'फादर नहीं, पिता!Ó
मैंने कहा, 'फिर तो मैं पिता भी नहीं कहकर कहूंगा 'बापूÓ!Ó
मेरे जवाब से वे इतने प्रसन्न हुए और पंजाबी में बोले, 'ऐही तां मैं चाहूंदा हां। बापू ही होणा चाइदा है!Ó
आपको बता दें, राहुलदेव मूलत: पंजाबी हैं। उनका जन्म जलंधर में हुआ। बाद में परिवार लखनऊ जा बसा। अब वे गुरुग्राम में निवास करते हैं।
त्रिभाषा फार्मूले के पक्षधर
अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर करने वाले राहुलदेव ने हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पत्रकारिता की। वे सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं लेकिन किसी भी देश में त्रिभाषा फार्मूले के पक्षधर हैं। उनका कहना है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम में भी यह बात कही गई है कि बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। मातृभाषा हम सबके लिए बहुत जरूरी है। साथ ही राजभाषा और समय के अनुसार अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी जरूरी है लेकिन अंग्रेजी हम पर हावी नहीं होने चाहिए।
किसी भी भाषा के विरोधी नहीं
जब मैंने उनसे कहा कि आपने राजस्थानी भाषा को मान्यता का विरोध किया है तो उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी भी क्षेत्रीय भाषा के विरोधी नहीं हैं। राजस्थानी के तो कतई नहीं। मैं तो मातृभाषा को प्रोत्साहित करने की बात करता हूं।
आठवीं अनुसूची में अब और नहीं...
बातचीत में राहुल देव ने स्पष्ट किया कि वे अब आठवीं अनुसूची में कोई भी और भाषा शामिल करने के विरोध में हैं। इसका कारण यह है कि भारत भर में हम सब अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं के लड़ रहे हैं, जबकि अंग्रेजी लगातार अपना वर्चस्व बढ़ाती चली जा रही है। आज हर घर में लोग बच्चों पर अंग्रेजी लादना चाहते हैं। इससे क्षेत्रीय भाषाओं के साथ हिंदी को भी बड़ा खतरा है। मैं हिंदी का भी पक्षधर नहीं हूं, बस यही चाहता हूं कि अंग्रेजी का प्रभुत्व रुके और सभी मातृभाषाओं का विकास हो। इसके लिए वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
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