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श्रीगंगानगर संसदीय क्षेत्र में न कोई लहर और न ही किसी नेता के नाम की माला जपने का असर

- किसी भ्रम में न रहें प्रत्याशी, ठोक-बजाकर वोट डालेगा वोटर
श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव अभियान पूरे चरम पर पहुंच चुका है। विभिन्न प्रत्याशी दावे-प्रतिदावे करके चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी निहालचंद मेघवाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम की माला जपकर चुनावी वैतरणी पार करने के प्रयास में हैं जबकि कांग्रेस प्रत्याशी भरतराम अनेक तरह के वादे करके मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं। कांंग्रेस और भाजपा ने सीएम अशोक गहलोत, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे जैसे नेताओं की सभाएं करके मतदाताओं को  प्रभावित करने की कोशिश की है लेकिन श्रीगंगानगर संसदीय क्षेत्र के मतदाता इससे प्रभावित होंगे, ऐसा लग नहीं रहा है। श्रीगंगानगर के मतदाता अपने विवेक के इस्तेमाल के लिए जाने जाते हैं। वह किसी लहर या नेता से प्रभावित नहीं होते और हमेशा व्यक्तिगत रूप से उम्मीदवार को ठोक-बजाकर देखने के बाद ही वोट डालते हैं।
श्रीगंगानगर संसदीय क्षेत्र और इसमें पडऩे वाले विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो ऐसे कई उदाहरण हैं, जब मतदाताओं ने किसी लहर और नेता से प्रभावित हुए बिना मतदान कर चुनाव परिणाम दिया है। सबसे उदाहरण तो वर्ष 1993 में पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत का है। उस समय जब श्रीगंगानगर के वोटरों को लगा कि शेखावत श्रीगंगानगर से जीतकर भी इस्तीफा दे देंगे तो उन्होंने राधेश्याम को जिताना उचित समझा। इसके बाद पांच साल पहले विधानसभा चुनाव मेंं श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी की सभा के बावजूद मतदाताओं ने राधेश्याम को पराजित कर दिया। इस बार राधेश्याम ने जातिवाद का दांव खेला मगर मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया। भाजपा प्रत्याशी विनीता आहूजा को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का रोड शो भी चुनाव नहीं जितवा पाया।
गत विधानसभा चुनाव में पीएम नरेन्द्र मोदी की सभा हनुमानगढ़ में हुई लेकिन इसके बावजूद भाजपा प्रत्याशी डॉ. रामप्रताप को हार का सामना करना पड़ा। इन उदाहरणों से इलाके की जनता की सोच परिलक्षित होती है। अगर कोई प्रत्याशी साम-दाम-दंड-भेद से चुनाव जीतने की सोच रहा है तो यकीनन वह बहुत बड़ी भूल कर रहा है। इलाके के वोटर न तो किसी दबाव में आते हैं और न ही कोई लालच ही उन्हें प्रभावित कर पाता है।
इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे मतदाताओं की परिपक्व सोच का परिणाम होंगे। अगर कोई प्रत्याशी किसी बड़े नेता के नाम की माला जपकर चुनाव जीतने की फिराक में है तो उसे इस गलती का अहसास 23 मई को हो जाएगा।
मतदाता किसी नेता के नाम या लहर में बहने वाले नहीं हैं। वह वोट डालते समय इस बात जरूर ध्यान रखेंगे कि जिस प्रत्याशी को वह वोट देने जा रहे हैं, उसका चरित्र कैसा है? उस पर कोई घिनौना इल्जाम तो नहीं है? मतदाता यह भी ध्यान रखेंगे कि वह प्रत्याशी कहीं पांच साल तक विकास की अनदेखी तो नहीं करता रहा है? मतदाता यह भी ध्यान रखेंगे कि प्रत्याशी ने पॉवर में रहते हुए आम जन के हितों का ध्यान रखा या फिर अपने चेहेतों के हित ही साधता रहा?


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