कांग्रेस नेताओं के बेटों की बात करने वाले राहुल भूल गए अपना इतिहास
कांग्रेस पुत्र मोह में बर्बाद हुई मगर किसके पुत्र मोह मेंं?
- रवि चमडिय़ा
देश में भाजपा 303 सीटें लेकर आ गई। कांग्रेस बुरी तरह हार गई। कांग्रेस अध्यक्ष चुनावों मेंं बीजेपी का सफाया होने का दावा करते रहे लेकिन सफाया कांग्रेस का हो गया। राहुल अपने गैर जिम्मेदाराना बयानों के लिए कुख्यात हो चुके हैं। चुनाव में परायज के बाद भी उनका यही रवैया है। राहुल मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम जैसे नेताओं पर हार का ठीकरा फोड़कर अपनी कुर्सी सलामत रखना चाह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि इन नेताओं ने अपने बेटों को पार्टी से ऊपर रखा। बेटों के लिए कोशिश करते रहे। पार्टी को भूल गए। इसी का परिणाम पार्टी की हार के रूप में सामने आया है।
हार का ठीकरा गहलोत, कमलनाथ और चिदम्बरम पर फोड़ रहे राहुल अपना इतिहास भूल गए हैं। राहुल की मां सोनिया गांधी ने भी तो उन्हें अध्यक्ष पद विरासत में सौंपकर बेटे को पार्टी से ऊपर रखा है। हैरानी है कि वे अपना उदाहरण याद नहीं करना चाहते और पार्टी के अन्य नेताओं के वंशवाद पर सवाल उठा कर जिम्मेदारी से भाग रहे हैं।
मोदी का जीतना तय था, इसमें कोई दो-राय नहीं है लेकिन इतनी बड़ी जीत राहुल की वजह से ही हुई है, यह किसी से छिपा नहीं है। राहुल गांधी अपने लंबे चुनावी अभियान में देश के लोगों जरा भी प्रभावित नहीं कर पाए। वे मोदी विरोध की नैया पर सवार होकर मंजिल पाना चाहते थे। अगर वे मोदी विरोध के बजाय जनता से सार्थक मुद्दों के आधार पर वोट मांगते तो शायद कांग्रेस का इतना बुरा हाल नहीं होता।
जिस तरह का बचकाना चुनाव अभियान राहुल ने चलाया, उसके दृष्टिगत राहुल को उनकी मां के अलावा शायद ही किसी ने गंभीरता से लिया हो। देश का बच्चा-बच्चा यह कहता रहा कि राहुल गांधी क्या निहाल करेंगे।
राहुल गांधी ने कहा है कि अशोक गहलोत, कमलनाथ एवं चिदम्बरम ने पार्टी से पहले पुत्र हित को रखा। वह पार्टी को भूलकर पुत्रों को जितवाने की कवायद में लग गए। राहुल का यह कहना कम से कम राजस्थान के संदर्भ में तो सही नहीं लग रहा है क्योंकि जोधपुर में बेटे वैभव को जितवाने के लिए गहलोत ने ऐसा कुछ नहीं किया है। गहलोत पूरी शिद्दत के साथ राज्य भर में पार्टी की चुनावी कमान संभाले रहे। गहलोत ने बेटे को जितवाने के लिए किसी को धमकाया हो, सीएम पद का किसी पर बेजा दबाव डाला हो, सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया हो, ऐसा जोधपुर में कोई नहीं कह सकता है। गहलोत ने बेटे को टिकट जरूर दिलवाया लेकिन शायद वह इतनी बड़ी गलती नहीं, जितनी सोनिया गांधी ने राहुल को अध्यक्ष पद सौंप कर की है।
हर तरफ से एक ही आवाज आ रही है कि कांग्रेस को अगर फिर से खड़ा करना है तो राजीव-इंदिरा के परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को पार्टी की कमान सौंपनी होगी। पार्टी की बैठक मेंं खुद राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे का प्रस्ताव रखकर कोई नॉन गांधी अध्यक्ष ढूंढने के लिए कहा लेकिन बाद में नेताओं से इसे खारिज करवा लिया। जाहिर है पहले इस्तीफे का प्रस्ताव और फिर उसे खारिज करवाना नौटंकी थी।
सीडब्ल्यूसी की बैठक कितनी गंभीर थी, इसका पता इस बात से चल जाता है कि इतनी गंभीर बैठक में भी राहुल अपने मोबाइल पर ही व्यस्त नजर आए। इस बैठक में राहुल गांधी को यह तो समझ आ गया कि कांग्रेस पुत्रमोह में बर्बाद हो गई है लेकिन यह समझना बाकी है किसके पुत्रमोह में? जब राहुल और तमाम कांग्रेसी यह समझ लेंगे तो कांग्रेस को रसातल से निकालने का मार्ग भी दिखाई देने लगेगा।
- रवि चमडिय़ा
देश में भाजपा 303 सीटें लेकर आ गई। कांग्रेस बुरी तरह हार गई। कांग्रेस अध्यक्ष चुनावों मेंं बीजेपी का सफाया होने का दावा करते रहे लेकिन सफाया कांग्रेस का हो गया। राहुल अपने गैर जिम्मेदाराना बयानों के लिए कुख्यात हो चुके हैं। चुनाव में परायज के बाद भी उनका यही रवैया है। राहुल मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम जैसे नेताओं पर हार का ठीकरा फोड़कर अपनी कुर्सी सलामत रखना चाह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि इन नेताओं ने अपने बेटों को पार्टी से ऊपर रखा। बेटों के लिए कोशिश करते रहे। पार्टी को भूल गए। इसी का परिणाम पार्टी की हार के रूप में सामने आया है।
हार का ठीकरा गहलोत, कमलनाथ और चिदम्बरम पर फोड़ रहे राहुल अपना इतिहास भूल गए हैं। राहुल की मां सोनिया गांधी ने भी तो उन्हें अध्यक्ष पद विरासत में सौंपकर बेटे को पार्टी से ऊपर रखा है। हैरानी है कि वे अपना उदाहरण याद नहीं करना चाहते और पार्टी के अन्य नेताओं के वंशवाद पर सवाल उठा कर जिम्मेदारी से भाग रहे हैं।
मोदी का जीतना तय था, इसमें कोई दो-राय नहीं है लेकिन इतनी बड़ी जीत राहुल की वजह से ही हुई है, यह किसी से छिपा नहीं है। राहुल गांधी अपने लंबे चुनावी अभियान में देश के लोगों जरा भी प्रभावित नहीं कर पाए। वे मोदी विरोध की नैया पर सवार होकर मंजिल पाना चाहते थे। अगर वे मोदी विरोध के बजाय जनता से सार्थक मुद्दों के आधार पर वोट मांगते तो शायद कांग्रेस का इतना बुरा हाल नहीं होता।
जिस तरह का बचकाना चुनाव अभियान राहुल ने चलाया, उसके दृष्टिगत राहुल को उनकी मां के अलावा शायद ही किसी ने गंभीरता से लिया हो। देश का बच्चा-बच्चा यह कहता रहा कि राहुल गांधी क्या निहाल करेंगे।
राहुल गांधी ने कहा है कि अशोक गहलोत, कमलनाथ एवं चिदम्बरम ने पार्टी से पहले पुत्र हित को रखा। वह पार्टी को भूलकर पुत्रों को जितवाने की कवायद में लग गए। राहुल का यह कहना कम से कम राजस्थान के संदर्भ में तो सही नहीं लग रहा है क्योंकि जोधपुर में बेटे वैभव को जितवाने के लिए गहलोत ने ऐसा कुछ नहीं किया है। गहलोत पूरी शिद्दत के साथ राज्य भर में पार्टी की चुनावी कमान संभाले रहे। गहलोत ने बेटे को जितवाने के लिए किसी को धमकाया हो, सीएम पद का किसी पर बेजा दबाव डाला हो, सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया हो, ऐसा जोधपुर में कोई नहीं कह सकता है। गहलोत ने बेटे को टिकट जरूर दिलवाया लेकिन शायद वह इतनी बड़ी गलती नहीं, जितनी सोनिया गांधी ने राहुल को अध्यक्ष पद सौंप कर की है।
हर तरफ से एक ही आवाज आ रही है कि कांग्रेस को अगर फिर से खड़ा करना है तो राजीव-इंदिरा के परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को पार्टी की कमान सौंपनी होगी। पार्टी की बैठक मेंं खुद राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे का प्रस्ताव रखकर कोई नॉन गांधी अध्यक्ष ढूंढने के लिए कहा लेकिन बाद में नेताओं से इसे खारिज करवा लिया। जाहिर है पहले इस्तीफे का प्रस्ताव और फिर उसे खारिज करवाना नौटंकी थी।
सीडब्ल्यूसी की बैठक कितनी गंभीर थी, इसका पता इस बात से चल जाता है कि इतनी गंभीर बैठक में भी राहुल अपने मोबाइल पर ही व्यस्त नजर आए। इस बैठक में राहुल गांधी को यह तो समझ आ गया कि कांग्रेस पुत्रमोह में बर्बाद हो गई है लेकिन यह समझना बाकी है किसके पुत्रमोह में? जब राहुल और तमाम कांग्रेसी यह समझ लेंगे तो कांग्रेस को रसातल से निकालने का मार्ग भी दिखाई देने लगेगा।
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