जब इक_ा हुए 'सारेÓ तो दिखे कई नजारे
- चुनावी बैठकों-सभाओं का दौर जारी, मतभेद और मनभेद वाले एक मंच पर
श्रीगंगानगर। लोकसभा चुनाव की सरगर्मी जारी है। आम मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनावी बैठकों-सभाओं का सिलसिला इन दिनों जोरों से चल रहा है साथ ही दिख रहे हैं कई नजारे। जिन नेताओं में आपसी मतभेद और मनभेद रह चुका है, वे भी एक मंच पर एक कतार में बैठे नजर आ रहे हैं। बुधवार को श्रीगंगानगर शहर में ऐसे अनेक दृश्य दिखे जिनमें एक-दूसरे को हराने के लिए मैदान में ताल ठोकने वाले साथ बैठे। इनमें से एक बागी होकर दूसरे दल में चला गया था तो एक अपने दम पर मैदान में आ डटा था। स्थिति, परिस्थिति ऐसी बनी कि अब ये नेता 'हम साथ-साथ हैंÓ गाते गली-मोहल्लों और धान मंडी में घूम रहे हैं। बात चल रही है इन दो नेताओं की तो इनमें से एक ने अपने सम्बोधन में दूसरे का स्वागत करने की बात कह डाली। दूसरे ने थोड़ी देर में बीच में माइक पकड़ा और बोले कि वे तो पहले से ही थे ऐसे इसलिए उन्हें कोई नहीं कह सकता कि वे हैं दूसरों जैसे। ठहाकों के बीच इस नेता ने अपने चुनाव चिन्ह तक का जिक्र किया और जोश जगाने की कोशिश करते हुए बोले कि जब बात हो राष्ट्र कि तो सारी बातें गौण।
इसी दल के मंच पर एक संगठन के राष्ट्रीय पदाधिकारी कहे जाने वाले नेता ने तो बकायदा दल से दिल का रिश्ता समाप्त करने पर बकायदा माफी मांगी और एक कहावत को एक नहीं दो बार बोलते हुए बोले कि ऐसा भी हो जाता है। घर में सालों से जमे कई पुराने नेताओं ने 'नयोंÓ का बार-बार स्वागत करते हुए कहा कि इनके आने से बन गए हैं नए समीकरण और अब हो जाएगा वैसा बड़े नेता सोच रहे हैं जैसा। एक अन्य प्रमुख राजनीतिक दल की बैठकों-सभाओं में भी कुछ ऐसे दृश्य देखे गए। इस दल में भी नाराज होकर बाहर जाने और फिर 'घरÓ में वापिस आने वाले कई नेता हैं। आमना-सामना होने और साथ में बैठने पर बात भी करनी पड़ती है और मुस्कुराना भी पड़ता है। कोई बात चल जाए तो मंच के माध्यम से अपने और अब अपने बनने वालों के आने-जाने की बात भी करनी पड़ती है। कुल मिलाकर मंच के सामने कम या ज्यादा, जितने भी होते हैं उन्हें कुछ ऐसा दिख रहा है या कुछ ऐसा सुनने को मिल रहा है जिसके कारण हंसी आए बिना नहीं रहती।
श्रीगंगानगर। लोकसभा चुनाव की सरगर्मी जारी है। आम मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनावी बैठकों-सभाओं का सिलसिला इन दिनों जोरों से चल रहा है साथ ही दिख रहे हैं कई नजारे। जिन नेताओं में आपसी मतभेद और मनभेद रह चुका है, वे भी एक मंच पर एक कतार में बैठे नजर आ रहे हैं। बुधवार को श्रीगंगानगर शहर में ऐसे अनेक दृश्य दिखे जिनमें एक-दूसरे को हराने के लिए मैदान में ताल ठोकने वाले साथ बैठे। इनमें से एक बागी होकर दूसरे दल में चला गया था तो एक अपने दम पर मैदान में आ डटा था। स्थिति, परिस्थिति ऐसी बनी कि अब ये नेता 'हम साथ-साथ हैंÓ गाते गली-मोहल्लों और धान मंडी में घूम रहे हैं। बात चल रही है इन दो नेताओं की तो इनमें से एक ने अपने सम्बोधन में दूसरे का स्वागत करने की बात कह डाली। दूसरे ने थोड़ी देर में बीच में माइक पकड़ा और बोले कि वे तो पहले से ही थे ऐसे इसलिए उन्हें कोई नहीं कह सकता कि वे हैं दूसरों जैसे। ठहाकों के बीच इस नेता ने अपने चुनाव चिन्ह तक का जिक्र किया और जोश जगाने की कोशिश करते हुए बोले कि जब बात हो राष्ट्र कि तो सारी बातें गौण।
इसी दल के मंच पर एक संगठन के राष्ट्रीय पदाधिकारी कहे जाने वाले नेता ने तो बकायदा दल से दिल का रिश्ता समाप्त करने पर बकायदा माफी मांगी और एक कहावत को एक नहीं दो बार बोलते हुए बोले कि ऐसा भी हो जाता है। घर में सालों से जमे कई पुराने नेताओं ने 'नयोंÓ का बार-बार स्वागत करते हुए कहा कि इनके आने से बन गए हैं नए समीकरण और अब हो जाएगा वैसा बड़े नेता सोच रहे हैं जैसा। एक अन्य प्रमुख राजनीतिक दल की बैठकों-सभाओं में भी कुछ ऐसे दृश्य देखे गए। इस दल में भी नाराज होकर बाहर जाने और फिर 'घरÓ में वापिस आने वाले कई नेता हैं। आमना-सामना होने और साथ में बैठने पर बात भी करनी पड़ती है और मुस्कुराना भी पड़ता है। कोई बात चल जाए तो मंच के माध्यम से अपने और अब अपने बनने वालों के आने-जाने की बात भी करनी पड़ती है। कुल मिलाकर मंच के सामने कम या ज्यादा, जितने भी होते हैं उन्हें कुछ ऐसा दिख रहा है या कुछ ऐसा सुनने को मिल रहा है जिसके कारण हंसी आए बिना नहीं रहती।
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