जाने क्यों हर चुनाव के बाद सूख जाते हंै पानी के मसले?
- चुनावी शोरगुल में खूब होंगे किसानों को पूरा पानी देने के वादे, फिर नहीं रहता किसी को याद
श्रीगंगानगर। विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। प्रत्याशियों की घोषणा का काम चल रहा है। राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने घोषणा पत्र भी जारी करेंगी। इन घोषणा पत्रों और चुनावी सभाओं में हनुमानगढ़ तथा श्रीगंगानगर जिलों के किसानों को पूरा पानी देने के खूब वादे किए जाएंगे लेकिन जैसे ही चुनावी शोरगुल थमेगा, किसी को यह वादे याद नहीं रहेंगे। किसान हर बार की तरह पानी के लिए 'जिंदाबाद-मुर्दाबादÓ के नारे लगाने पर मजबूर हो जाएंगे।
हनुमानगढ़ तथा श्रीगंगानगर जिलों के किसानों के लिए नहरी पानी जीवन-मरण का प्रश्न है। जब भी पानी को लेकर आशंका पैदा होती है तो किसान बेचैन हो उठते हैं। चाहे नहर बंद हो, चाहे किसी कारण बारी पिटने का मसला, नुकसान किसानों को ही होता है।
वैसे तो जब से नहरों का जाल क्षेत्र मेंं फैला है, तब से किसानों के आंदोलन होते ही आ रहे हैं लेकिन पिछले चार-पांच साल से पानी का संकट गहराता जा रहा है। किसानों की कई-कई बारियां पिट जाती हैं। टेलों पर बसे किसान हमेशा 'हाय पानी-हाय पानीÓ चिल्लाने पर मजबूर रहते हैं। राज्य मेंं भाजपा सरकार के पांच सालों के दौरान दोनों जिलों मेंं पानी की कमी का मुद्दा जिस कदर छाया रहा है, वह समस्या की गंभीरता को दर्शाने के लिए काफी है।
जहां नहरें हैं, वहां के किसान पर्याप्त पानी न मिलने की शिकायत करते हैं तो सूरतगढ़ इलाके में सिंगरासर माइनर का मुद्दा आंदोलन की वजह बना हुआ है। गंग नहर, भाखड़ा और इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र सभी में नहरी पानी की कमी किसानों के लिए चिंता की वजह बनी हुई है।
किसान नेता आरोप लगाते हैं कि पानी की कमी का एक कारण पंजाब से पूरा पानी नहीं मिल पाना है तो दूसरा कारण मिलने वाले पानी का समान वितरण नहीं होना है। रेग्युलेशन समेत तमाम तरह की व्यवस्थाएं होने के बावजूद नहरी पानी वितरण मेंं भेदभाव की बात अक्सर उठती है। लेकिन राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में हिमाचल के पानी के मसले सूख जाते हैं। राजनेताओं की आंख का पानी इस कदर खत्म हो गया है कि उन्हें पानी जैसा संवेदनशील मुद्दा नजर नहीं आता।
जाने कब मिलेगी प्रदूषित पानी से मुक्ति
दोनों जिलों में पंजाब से मिलने वाला प्रदूषित पानी समस्या का कारण बना हुआ है। इस प्रदूषित पानी के कारण नहरों मेंं सड़ांध मारता हुआ पानी आता है। औद्योगिक इकाइयों के जहरीले अपशिष्ट युक्त इस पानी के कारण दोनों जिलों में कैंसर जैसी बीमारियां फैल रही हैं। कई दशक से दोनों जिलों के लोग इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। साल भर पहले नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी नहरों मेंं प्रदूषित पानी मिलाने के खिलाफ आदेश जारी कर चुका है लेकिन लगता नहीं कि किसी को कोई परवाह है।
श्रीगंगानगर। विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। प्रत्याशियों की घोषणा का काम चल रहा है। राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने घोषणा पत्र भी जारी करेंगी। इन घोषणा पत्रों और चुनावी सभाओं में हनुमानगढ़ तथा श्रीगंगानगर जिलों के किसानों को पूरा पानी देने के खूब वादे किए जाएंगे लेकिन जैसे ही चुनावी शोरगुल थमेगा, किसी को यह वादे याद नहीं रहेंगे। किसान हर बार की तरह पानी के लिए 'जिंदाबाद-मुर्दाबादÓ के नारे लगाने पर मजबूर हो जाएंगे।
हनुमानगढ़ तथा श्रीगंगानगर जिलों के किसानों के लिए नहरी पानी जीवन-मरण का प्रश्न है। जब भी पानी को लेकर आशंका पैदा होती है तो किसान बेचैन हो उठते हैं। चाहे नहर बंद हो, चाहे किसी कारण बारी पिटने का मसला, नुकसान किसानों को ही होता है।
वैसे तो जब से नहरों का जाल क्षेत्र मेंं फैला है, तब से किसानों के आंदोलन होते ही आ रहे हैं लेकिन पिछले चार-पांच साल से पानी का संकट गहराता जा रहा है। किसानों की कई-कई बारियां पिट जाती हैं। टेलों पर बसे किसान हमेशा 'हाय पानी-हाय पानीÓ चिल्लाने पर मजबूर रहते हैं। राज्य मेंं भाजपा सरकार के पांच सालों के दौरान दोनों जिलों मेंं पानी की कमी का मुद्दा जिस कदर छाया रहा है, वह समस्या की गंभीरता को दर्शाने के लिए काफी है।
जहां नहरें हैं, वहां के किसान पर्याप्त पानी न मिलने की शिकायत करते हैं तो सूरतगढ़ इलाके में सिंगरासर माइनर का मुद्दा आंदोलन की वजह बना हुआ है। गंग नहर, भाखड़ा और इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र सभी में नहरी पानी की कमी किसानों के लिए चिंता की वजह बनी हुई है।
किसान नेता आरोप लगाते हैं कि पानी की कमी का एक कारण पंजाब से पूरा पानी नहीं मिल पाना है तो दूसरा कारण मिलने वाले पानी का समान वितरण नहीं होना है। रेग्युलेशन समेत तमाम तरह की व्यवस्थाएं होने के बावजूद नहरी पानी वितरण मेंं भेदभाव की बात अक्सर उठती है। लेकिन राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में हिमाचल के पानी के मसले सूख जाते हैं। राजनेताओं की आंख का पानी इस कदर खत्म हो गया है कि उन्हें पानी जैसा संवेदनशील मुद्दा नजर नहीं आता।
जाने कब मिलेगी प्रदूषित पानी से मुक्ति
दोनों जिलों में पंजाब से मिलने वाला प्रदूषित पानी समस्या का कारण बना हुआ है। इस प्रदूषित पानी के कारण नहरों मेंं सड़ांध मारता हुआ पानी आता है। औद्योगिक इकाइयों के जहरीले अपशिष्ट युक्त इस पानी के कारण दोनों जिलों में कैंसर जैसी बीमारियां फैल रही हैं। कई दशक से दोनों जिलों के लोग इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। साल भर पहले नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी नहरों मेंं प्रदूषित पानी मिलाने के खिलाफ आदेश जारी कर चुका है लेकिन लगता नहीं कि किसी को कोई परवाह है।
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