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लंबित मामले में कोर्ट या जज की आलोचना पर विचार करेंगे : सुप्रीम कोर्ट

- वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को नोटिस
नई दिल्ली। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ केंद्र और अटॉर्नी जनरल की अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह इस बात पर विचार करेगा कि क्या कोई व्यक्ति जनता की राय को प्रभावित करने के लिए किसी विचाराधीन मामले में अदालत की आलोचना कर सकता है, जिससे न्याय की प्रक्रिया में हस्तक्षेप हो सकता है।
कोर्ट ने कहा कि आजकल अदालत के समक्ष विचाराधीन मामले में पेश होने वाले अधिवक्ताओं द्वारा मीडिया में बयान देना और टेलीविजन परिचर्चा में हिस्सा लेना चलन बन गया है। कोर्ट ने कहा कि अदालत मीडिया में मामलों की रिपोर्टिंग के खिलाफ नहीं है लेकिन अदालत में विचाराधीन किसी मामले में पेश होने वाले अधिवक्ताओं को सार्वजनिक बयान देने से परहेज करना चाहिए। अदालत ने कहा कि स्वतंत्रता जिम्मेदारी के साथ आती है और न्यायपालिका को जनता की राय से बचाने की जरूरत है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने यह टिप्पणी अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और केन्द्र की भूषण के खिलाफ उनकी ट्वीट को लेकर दायर अवमानना याचिकाओं पर सुनवायी करते हुए की। भूषण ने अपने ट्वीट में कहा था कि सरकार ने लगता है शीर्ष अदालत को गुमराह किया है और शायद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की बैठक का गढ़ा हुआ ब्योरा सौंपा है। सुप्रीम कोर्ट ने भूषण से तीन सप्ताह में जवाब मांगा जो कि अदालत कक्ष में मौजूद थे और उन्होंने नोटिस स्वीकार किया।


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