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सरकार का यू-टर्न : अब पार्षद चुनेंगे निकाय प्रमुख

जयपुर।  राज्य की गहलोत सरकार ने आखिरकार निकाय प्रमुख, मेयर और सभापति के चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से करवाने का फैसला ले ही लिया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव पर चर्चा होने के बाद इसे मंज़ूरी दे दी गई। गौरतलब है कि निकाय प्रमुखों के चुनाव प्रत्यक्ष रूप से करवाए जाने को लेकर तत्कालीन गहलोत सरकार ने ही फैसला लिया था। लेकिन अब अपनी ही सरकार का फैसला पलटते हुए चुनाव को अप्रत्यक्ष करवाने का फैसला लिया गया है।
स्वायत शासन मंत्री शांति धारीवाल ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि जबसे भाजपा केन्द्र में सत्ता में आई है, तब से लेकर देश में हिंसा का माहौल बना है। जातिवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। हमने विधानसभा उप चुनावों में यह देखा कि एक साम्प्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश हुई, जिसको लेकर भाजपा कामयाब भी रही। एक वर्ग विशेष को अलग रखने की कोशिश की गई है। राजस्थान की कांग्रेस सरकार चाहती है कि लोग आपस में भाईचारा और सौहाद्र्र बना रहे, माहौल न बिगड़े इसलिए सीधे चुनाव नहीं करवाए जाएंगे। धारीवाल ने आरोप लगाया कि भाजपा के राज में बुद्धिजीवियों पर राष्ट्रदोह के मुकदमे दर्ज करवाए जा रहे हैं। कांग्रेस व आमजन को तंग करने की कोशिश की जा रही है। धारीवाल ने कहा कि इसके अलावा अध्यक्ष के सीधे चुनाव से वार्ड पार्षद को भी यह लगता है कि उसको अनदेखा किया गया है, क्योंकि अध्यक्ष यह कह सकता है कि उसे सीधे जनता ने चुना है। इसलिए पार्षद अपने आपको नीचा महसूस करते हैं।
मीसा बंदियों की पेंशन पर लगी रोक
जयपुर। राजस्थान सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए राज्य के मीसा बंदियों के पेंशन पर रोक लगा दी है। राजस्थान में 1120 मीसा बंदियों को 20 हजार रुपये का मासिक पेंशन मिलता था। इसके अलावा चिकित्सा और यात्रा भत्ता भी दिया जा रहा था। गहलोत सरकार का कहना है कि वित्तीय भार को कम करने के लिए यह निर्णय लिया गया। मीसा बंदियों को वसुंधरा सरकार ने लोकतंत्र सेनानी का नाम दिया था।
पहले खुद ने की थी घोषणा
विधानसभा चुनाव के दौरान महापौर और सभापतियों के सीधे चुनाव कराने की घोषणा सरकार ने ही की थी। सरकार बनते ही एक्ट में संशोधन कर सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अपने इरादे तो जता दिए थे, लेकिन फिर यही सरकार के लिए गलफांस बनकर रह गई।
इस कारण बैकफुट पर सरकार
कांग्रेस सरकार बनते ही गहलोत सरकार ने विधानसभा में शैक्षणिक बाध्यता की शर्त हटाते हुए निगम महापौर और निकाय के सभापतियों के चुनाव सीधे करवाने का निर्णय कर दिया था। लेकिन लोकसभा चुनावों में राष्ट्रवाद के मुद्दे पर प्रदेश में सभी 25 सीटों पर सूपड़ा होने और हाल ही में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद राजनीतिक हालात बदल गए।
जानकार बताते हैं कि कांग्रेस नेताओं को डर सता रहा था कि राष्ट्रवाद और धारा 370 के मामले में लोकसभा की तरह महापौर और सभापतियों के चुनाव में कांग्रेस को नुकसान न उठाना पड़ जाए। इसे लेकर कांग्रेस नेताओं ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी महापौर और सभापतियों के चुनाव सीधे नहीं कराने का सुझाव दिया था।

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