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नहीं हुआ सभी आदर्श, उत्कृष्ट स्कूलों के नाम में सुधार

- बीस तक काम पूरा कर भिजवानी थी रिपोर्ट
श्रीगंगानगर। सरकारी स्कूलों के नाम के बीच में जोड़े गए आदर्श, उत्कृष्ट शब्द हटाने की प्रक्रिया चल रही है। शिक्षा निदेशालय बीकानेर के एक आदेश के बाद ऐसा किया जा रहा है। हालांकि यह कार्य 20 सितम्बर तक पूरा किया जाना था, लेकिन सभी स्कूलों के नाम में अभी तक सुधार नहीं हो पाया है।
राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद के राज्य परियोजना निदेशक डॉ. एनके गुप्ता के आदेशों की पालना में निदेशालय ने जिले भर के संस्था प्रधानों को राज्य में आदर्श एवं उत्कृष्ट स्कूल योजना के अंतर्गत चयनित स्कूलों के नाम में लगे आदर्श, उत्कृष्ट शब्द नहीं जोडऩे के निर्देश जारी कर रखे हैं।
 दरअसल आदर्श एवं उत्कृष्ट विद्यालय योजना में चयनित विद्यालयों के कुछ संस्था प्रधानों ने दिशा निर्देशों को समझे बिना ही आनन-फानन में स्कूलों के मुख्य द्वार, शाला दर्पण पोर्टल, स्कूल लेटर हैड के साथ स्कूल स्टाम्प पर स्कूल के नाम के बीच आदर्श और उत्कृष्ट शब्द जोड़ दिए थे जबकि इस तरह के आदेश कभी जारी ही नहीं किए गए थे। जो स्कूल आदर्श अथवा उत्कृष्ट विद्यालय योजना में चयनित हुए थे, उन्हें स्कूल के नाम के बाद छोटे अक्षरों में राज्य की 'आदर्श योजना अंतर्गत चयनित विद्यालयÓ या राज्य सरकार की 'उत्कृष्ट योजना अंतर्गत चयनित विद्यालयÓ लिखना था। इसी गलती को दूर करने के लिए यह निर्देश दिए गए हैं। एडीपीसी रमसा हरचन्द गोस्वामी ने बताया कि हमारे जिले में 336 ग्रामीण आदर्श एवं  9 शहरी आदर्श विद्यालय हैं। उत्कृष्ट विद्यालयों की संख्या 281 बताई गई है। अब इन सभी स्कूलों के नाम में संशोधन करवाया जा रहा है। शिक्षा विभाग की कल होने वाली बैठक में इस संबंध में जारी आदेशों की पालना की समीक्षा होगी।
शाला दर्पण पर भी बदल दिया नाम
आदर्श व उत्कृष्ट योजना के तहत पहले से ही आदर्श योजना अन्तर्गत चयनित लिखा जाना था, लेकिन संस्था प्रधानों व अधिकारियों ने इस लाइन को पढ़ा तक नहीं और शाला दर्शन व शाला दर्पण पोर्टल पर स्कूलों का नाम राजकीय आदर्श, आदर्श राजकीय, उत्कृष्ट राजकीय या राजकीय उत्कृष्ट कर दिया। ऐसा पूरे प्रदेश में किया गया।
लैटर हैड व मोहरें तक बनवा लीं
संस्था प्रधानों ने स्कूल के बोर्ड बदलवा दिए। इसके अलावा लैटर हैड में भी स्कूल का नाम गलत कर दिया। यह लम्बे समय से जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय तक पहुंचता रहा, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। संस्था प्रधानों ने स्कूल की स्टाम्प (मोहर) में भी आदर्श व उत्कृष्ट शब्द को जोड़ दिया तथा धड़ले से इसका इस्तेमाल भी करते रहे। विभाग के किसी भी अधिकारी ने इसके लिए संस्था प्रधानों को टोका तक नहीं।  
अब फिर खर्च किए जा रहे लाखों
 जिन स्कूलों को नए आदेशों के हिसाब से नाम बदलाव करना पड़ेगा। उन्हें लैटर पेड, मोहर, मुख्य द्वार पर लिखे गए नाम में भी बदलाव करना पड़ेगा। ऐसे में अब लैटर पेड, मोहर आदि नए बनवाने पड़ेंगे। अगर मुख्य द्वार पर नाम का संशोधन करवाते हैं तो करीब दो हजार रुपए एक स्कूल के मुख्य द्वार का खर्च आता है। इस हिसाब से जिले में 626 स्कूलों को 12 लाख 52 हजार रुपये खर्च करने होंगे।


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