डाकघरों में पड़े 9 हजार करोड़ रुपये का कोई दावेदार नहीं
नईदिल्ली। देशभर के डाकघरों में 9,000 करोड़ रुपये से अधिक रकम लावारिस पड़े हैं। इन पैसों का कोई दावेदार नहीं है। बड़ी बात यह है कि बैंकों की तरह डाकघर इन पैसों का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते हैं। डाकघरों में सबसे ज्यादा लावारिस पैसे पश्चिम बंगाल में पड़े हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश के डाकघरों में पड़ी 9,000 करोड़ रुपये से अधिक की रकम का कोई दावेदार नहीं है। यह रकम इतनी है कि केंद्र सरकार अगर इसमें 600 करोड़ रुपये मिला दे, तो इससे गगनयान प्रॉजेक्ट की फंडिंग की जा सकती है।
ये रकम डाक विभाग की छह स्मॉल सेविंग्स स्कीमों- किसान विकास पत्र, मंथली इनकम स्कीम, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट, पब्लिक प्रॉविडेंट फंड, रेकरिंग डिपॉजिट और टाइम डिपॉजिट में पड़े हैं। कुल रकम 9,395 करोड़ रुपये हैं। डाकघर के अधिकारियों का कहना है कि अपने यहां पड़े लावारिस पैसों को बैंक या तो अनक्लेम्ड अकाउंट में ट्रांसफर कर देते हैं या फिर डिपॉजिट अवेयरनेस ऐंड एजुकेशन फंड (डीईएएफ) में डाल देते हैं, जिसके जरिये जमाकर्ताओं के लिए फाइनैंशल लिट्रेसी प्रोग्राम का संचालन किया जाता है। लेकिन बैंकों की तरह डाकघर इन पैसों का इस तरह से इस्तेमाल नहीं कर सकते। इन खातों में पड़े लावारिस पैसों को अन्कलेम नहीं, बल्कि साइलेंट कहा जाता है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश के डाकघरों में पड़ी 9,000 करोड़ रुपये से अधिक की रकम का कोई दावेदार नहीं है। यह रकम इतनी है कि केंद्र सरकार अगर इसमें 600 करोड़ रुपये मिला दे, तो इससे गगनयान प्रॉजेक्ट की फंडिंग की जा सकती है।
ये रकम डाक विभाग की छह स्मॉल सेविंग्स स्कीमों- किसान विकास पत्र, मंथली इनकम स्कीम, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट, पब्लिक प्रॉविडेंट फंड, रेकरिंग डिपॉजिट और टाइम डिपॉजिट में पड़े हैं। कुल रकम 9,395 करोड़ रुपये हैं। डाकघर के अधिकारियों का कहना है कि अपने यहां पड़े लावारिस पैसों को बैंक या तो अनक्लेम्ड अकाउंट में ट्रांसफर कर देते हैं या फिर डिपॉजिट अवेयरनेस ऐंड एजुकेशन फंड (डीईएएफ) में डाल देते हैं, जिसके जरिये जमाकर्ताओं के लिए फाइनैंशल लिट्रेसी प्रोग्राम का संचालन किया जाता है। लेकिन बैंकों की तरह डाकघर इन पैसों का इस तरह से इस्तेमाल नहीं कर सकते। इन खातों में पड़े लावारिस पैसों को अन्कलेम नहीं, बल्कि साइलेंट कहा जाता है।

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